Thursday, July 28, 2016

टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना नहीं।।


उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति के बाद विद्यालय नियमित खुलने लगे। और प्रदेश की बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण वातावरण बना।
प्रदेश के निजी कालेजों से पैसे के बल पर बीएड बीटीसी कर के टेट 2011 में फर्जीबाड़े के सहारे बेसिक शिक्षा में घुसपैठ की। और फिर बेसिक शिक्षा की रीढ़ कहे जाने वाले शिक्षामित्रों के समायोजित करने का विरोध किया जाने लगा।

◆क्या वास्तव में शिक्षामित्र की शैक्षिक योग्यता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानक अनुसार नहीं है?

●आइये इस पर एनसीटीई और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दृष्टीकोण जानते हैं।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वर्किंग ग्रुप मेंबर रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* ने इस पर विस्तृत साक्ष्य जुटाए हैं।
जिससे हम ये सिद्ध करने में सक्षम हैं कि एनसीटीई के विभिन्न रेगुलाशन्स में दिए गए मानको को समायोजित शिक्षक निश्चित रूप से पूरा करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं शिक्षक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा में दिए गए मानक के अनुसार समायोजित शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के योग्य हैं। एमएचआरडी के प्रमाणिक दस्तावेज़ों के आधार पर ये सिद्ध होता है कि शिक्षामित्र वास्तविक रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले शिक्षक थे, है और रहेंगे।

जो लोग टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना बता कर शिक्षामित्रों को मानसिक रूप से उत्पीड़ित कर रहे हैं उन्हें नियमों का ज्ञान नहीं है। और वे चाहते हैं कि शिक्षामित्र भयाक्रांत हों।
बीएड बीटीसी बेरोज़गार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का नारा लगा के टेट को ही इस का आधार बता कर अपनी अल्पज्ञता दर्शाते हैं।
कोई पात्रता परीक्षा कभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी नहीं होती। इसके लिए मात्र अनुभव और प्रशिक्षण ही एक मात्र आधार और गारंटी होती है। ये तथ्य एनसीटीई और शिक्षक प्रशिक्षण जुडी सभी सभी संस्थाएं मानती हैं।
यहाँ हम पुनः अवगत करा दें कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में शिक्षामित्रों के योगदान की बात आएगी तो हम अपने अकाट्य साक्ष्यों से उनका संतुष्टिपूर्ण जवाब देंगे।
★आजीविका और मन सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

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