Sunday, August 28, 2016

शिक्षामित्र समायोजन केस का 72825 भर्ती से डिटैग होने के निहितार्थ।

24 अगस्त की सुनवाई में  "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्विस, अधिवक्ता ज्योति मेंदिरत्ता उपस्थित रहे और "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंम्बर्स रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियो* ने अपने वकील के माध्यम से अपनी बात कोर्ट के समक्ष रखने की पूरी तैयारी की थी। बस इंतज़ार था तो बस फाइनल बहस का। लेकिन केस का नंबर आते ही जज महोदय ने 23 नवंबर की तारीख लगाते हुए शिक्षामित्र समायोजन के 72825 भर्ती मामले से अलग कर दिया।
पूरी सुनवाई मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के अनुमान अनुरूप हुई जैसा कि हम अपनी पिछली पोस्ट में बता चुके थे।

आइये अब इसके निहितार्थ को समझते हैं।

72825 शिक्षक भर्ती  मामले से समायोजन केस अलग होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कोर्ट शिक्षक भर्ती मामले को 5 ओक्टूबर को निबटा कर इनका लोकस खत्म करना चाहता है। साथ ही 72825 से अधिक एक भी याची के पक्ष में नहीं है। यही कारण है कि बीएड बीटीसी बेरोज़गारों का मनोबल 24 अगस्त से टूट चुका है और वे गहरी निराशा के गर्त में है।

समायोजन मामले पर अब चूँकि 23 नवंबर को सुनवाई होगी और ये सुनवाई मेरिट पर होगी। ऐसा प्रतीत होता है। सभी पार्टीज़ से लिखित बहस के बिंदु मांगे जा चुके हैं। संयुक्त सक्रिय संघ को छोड़ कर लगभग सभी ने ये बिंदु जमा कर दिए हैं। चूँकि कोर्ट के समक्ष बड़ी संख्या में एसएलपी डाली गई हैं जिन पर 100 से अधिक वकील खड़े होंगे। ऐसे में उक्त लिखित बिन्दुओ के आधार पर कोर्ट बहस करायेगा। ताकि सिर्फ सीनियर अधिवक्ता ही बोल सकें वो भी तब जब राज्य सरकार के वकील की बहस पूरी हो जाये तब। यहाँ उन लोगों को मौका मिलेगा जो अपनी बात संवैधानिक उपबन्धों पर लिखित बहस जमा कर चुके होंगे। मिशन सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन द्वारा लिखित बहस खुद तैयार कर जमा की गई है और शिक्षामित्रों की ओर से दाखिल की गई अब तक की सभी एसएलपी से अलग और संवैधानिक उपबन्धों पर आधारित एसएलपी है। लिखित बहस को भी इसी का आधार दिया गया है।

★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Tuesday, August 23, 2016

24 अगस्त की सुनवाई पे संशय ख़त्म, मिसलेनियस फाइनल लिस्ट में 14 नम्बर पे लगा केस।


24 अगस्त की सुनवाई पे संशय ख़त्म, मिसलेनियस सप्लीमेंट्री लिस्ट में 14 नम्बर पे लगा है शिक्षामित्र केस।

चूँकि जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस सी  नागप्पन के इस सुनवाई वाली बेंच 1 बजे तक की है इसलिए केस की सुनवाई रेगुलर हियरिंग के रूप में होगी। 27 जुलाई की सुनवाई की तरह मेंशनिंग के तौर पे जज साहब के दिशा निर्देश जारी होगे और अगली डेट मिलेगी।

24 अगस्त की सुनवाई में  "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्विस, अधिवक्ता फ़िडेल सेबेस्टियन और अधिवक्ता(एओआर) ज्योति मेंदिरत्ता उपस्थित रहेंगे। 
अब चूँकि मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह द्वारा लिखित बहस के बिंदु कोर्ट में पहले ही 26 जुलाई को जमा किये जा चुके हैं, और केस मेरिट पे आने पे अकाट्य साक्ष्यों के साथ हाइकोर्ट के फैसले के हर हर बिंदु का जवाब तैयार कराया गया है। 
मिशन सुप्रीम कोर्ट के वर्किंग ग्रुप मेंम्बर्स रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियो* ने अपने वकील के माध्यम से अपनी बात कोर्ट के समक्ष रखने की पूरी तैयारी की है। अब बस इंतज़ार है तो बस फाइनल बहस का।
★24 अगस्त की सुनवाई की संभावित रुपरेखा

लिखित सबमिशन मांगे जाने का परिणाम :-
27 जुलाई को अवशेष शिक्षामित्रों और नई डाली गई सभी एसएलपी और याचिकाकर्ताओं कोे 17 अगस्त तक रिटेन सबमिशन जमा करने की छूट दी गई थी। फिर भी कई कोर्ट पैरवीकारों द्वारा लिखित सबमिशन जमा नहीं किया।
संभवतः कोर्ट अब इन सब्मिशंस द्वारा बहस के बिंदु तै करेगा। और 72825 व अन्य शिक्षक भर्ती पर बहस के बिंदु तै करके के अलग किये जा सकते हैं।

शिक्षामित्र समायोजन मामले में अवशेष व् अन्य मुद्दों पर बहस की गाइड लाइन तै की जा सकती है। 

दोनों केस अलग अलग किये जाने की भी सम्भावना है।

24 अगस्त की सुनवाई में बहस टलने के आसार ! :-

24 अगस्त की सुनवाई में बहस टलने की पूर्ण सम्भावना है। 

अब जबकि सभी के लिखित निवेदन जमा किये जा चुके हैं तो संभवत राज्य सरकार की क्लोज़र रिपोर्ट और समायोजन केस के हाई कोर्ट की पत्रावली पर ब्रीफ नोट, और काउंटर व् रेजोइंडर सबमिशन माँगा जा सकता है।
हमारे एओआर श्रीमती ज्योति मेंदिरत्ता  द्वारा भी आशंका जताई है कि 24 अगस्त को सुनवाई की बहस टल सकती है। वहीँ दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में लिखित सुब्मिशन जमा हो जाने के बाद रेजोइंडर का आदेश हो सकता है या फिर इन्ही सुब्मिशनस पर मौखिक बहस कराई जा सकती है।
हालात को देखते हुए रेजोइंडर सुब्मिशन लेने के साथ मौखिक बहस होने की सर्वाधिक सम्भावना है।लेकिन ये बहस व सुनवाई की अगली तारीख लगने के बाद होने की पूरी सम्भावना है।

"मिशन सुप्रीम कोर्ट" की 24 अगस्त की तैयारी:-
 समूह द्वारा दाखिल की गई एसएलपी के ग्राउंड्स अब तक दाखिल हुई सभी एसएलपी से अलग और संवैधानिक उपबन्धों पर आधारित हैं इसलिए समूह के सदस्य जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
लिखित सुब्मिशन मांगे जाने से समूह के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस और अधिवक्ता फ़िएडेल सेबेस्टियन को अपनी बात रखने में आसानी होगी।
लिखित सबमिशन तलब कर के सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई को सरल बना दिया गया है साथ ही केस को जटिल होने से रोकने का रास्ता निकाला गया। जिससे हमारी जीत की सम्भावना और बढ़ गई है।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के साथियों को अवगत कराना चाहते हैं कि 26 जुलाई को "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह द्वारा जमा किए गए लिखित बहस के बिंदु विरोधी को ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Tuesday, August 16, 2016

उमादेवी केस के नियम शिक्षामित्रों पर लागू नहीं होते!!

आज सुप्रीमकोर्ट में लिखित बहस करने का आखरी दिन है। "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार अपना सबमिशन 26 जुलाई को ही मेंशन करवा चुके हैं, क्योंकि इसकी अंतिम तिथि 27 जुलाई थी। वो तो खुशकिस्मती से 27 जुलाई को जज महोदय ने 17 अगस्त तक लिखित सबमिशन जमा करने की छूट दे दी वर्ना शिक्षामित्र संघ और टीमों की लिखित बहस जमा भी न हो पाती।  खैर जो हुआ अच्छा हुआ आज हम समायोजन की वैधता को चुनौती देने वाले उमा देवी केस पर जिज्ञासुओं की समस्या का समाधान करते हैं:-

शिक्षामित्र केस में उमादेवी केस घुसाने के लिए विपक्षी द्वारा काउंटर दाखिल किया गया था ताकि इसपर बहस कराइ जा सके।
हाई कोर्ट के पार्ट बी में लिखा गया-
The absorption of Shiksha Mitras is in violation of the principles which have been laid down by the Hon'ble Supreme Court in Secretary, State of Karnataka Vs Umadevi.
अर्थात शिक्षामित्र समायोजन में उमादेवी केस में दी गई व्यवस्था का उल्लंघन हुआ है।

मज़े की बात ये कि कोर्ट ने बिना किसी बहस के हमें संविदा कर्मी मान लिया। हमें लगता है हमारे पैरवीकार लोगो की चूक के कारण ही ऐसे भयानक हालात बने। सिर्फ इतना ही नहीं हाईकोर्ट के फैसले में शिक्षामित्र समायोजन की पूरी की पूरी वैधता ही उमादेवी केस पर निर्धारित की गई और समायोजन रद्द कर दिया गया।
आइये! कुछ तथ्यों से अवगत कराते हैं। उमादेवी केस द्वारा निर्धारित नियमों को सुप्रीम कोर्ट के अलग अलग फैसलों में रिव्यु किया गया है और हाइकोर्ट के फैसलों को रद्द करते हुए प्रभावित संविदा शिक्षकों और संविदाकर्मियों के पक्ष में फैसला दिया गया है। कुछ उदाहरण निम्नवत हैं:-
Gadilingappa & Ors केस 11 January, 2010
इस केस में संविदा शिक्षकों के नियमितीकरण केे पक्ष में फैसला देते हुये सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा-
Here, we also wish to point out that it is a well settled principle of law that even if a wrong committed in an earlier case,
the same cannot be allowed to be perpetuated.
अर्थात हम उमादेवी केस के तै शुदा क़ानूनी सिध्दांतों को उसी तरह बनाये रखने की इज़ाज़त नहीं दे सकते।
प्रसंगवश हम हिमाचल हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के फैसले का भी उल्लेख करते चलें जिस में शिक्षामित्रों को नियमित करने के आदेश देते हुए कहा गया कि उमादेवी केस के नियमों की परिस्थितयां अलग थी और ये लोग 14 साल से कार्यरत हैं।
★अभी हाल ही में 15 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया-
SACHIVALAYA DAINIK VETAN BHOGI KARAMCHARI UNION केस अगस्त 2016
जिसमे कोर्ट ने व्यवस्था दी कि:-
Uma Devi (supra) only dealt with in relation to the execution and regularisation of temporary and adhoc service without any reference to any law.
Uma Devi never dealt with a validity of
the judicial order which had attained finality.
अर्थात उमादेवी केस द्वारा निर्धारित नियम अंतिम नहीं हैं। और कहते हुए चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के पक्ष में फैसला देते हुए हाइकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और सरकार को इनके लिए नियम निर्धारित करने का आदेश दिया।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट*।।

Monday, August 15, 2016

भारतीय संविधान के अनु० 19 और 21 में दी गई रोजी रोटी की सुनिश्चितता की आज़ादी।।


जश्ने आज़ादी मुबारक, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ प्रेषित करते हुए "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार का चिंतन:-
प्रदेश के लगभग 172000 शिक्षमित्रों ने पिछले 16 वर्षों से अपनी रोजी रोटी की सुनिश्चितता की आज़ादी गिरवी रखी हुई है।
2001से 2014 तक 14 सालों से शिक्षामित्रो को प्रदेश की सरकारों द्वारा भारतीय संविधान की धारा 19 और 21 में दी गई आजादी की रोजी रोटी की सुनिश्चितता की अवधारणाओं का उल्लंघन किया जाता रहा। और फिर 2014 में राज्य सरकार ने अपना कर्तव्य निभाते हुए शिक्षामित्रों को अध्यापक बना के उनका संविधान प्रदत्त अधिकार देने का प्रयास किया। लेकिन इसपर अपने ही बीएड/बीटीसी बेरोज़गार भाइयों की बुरी नज़र पड़ी और हाई कोर्ट के फैसले ने उनके परिवार के सदस्यो को पीड़ित किया, क्योंकि उनकी रोजी रोटी कोर्ट के रवैए के कारण छीन ली गई तो राज्य सर्कार ने मामला सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख पेश किया। जबकि देश के विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दर्जनों फैसले आजीविका के अधिकार की रक्षा के लिए दिए गए। जैसे नवंबर 2014 में शिमला हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का ये फैसला कि शिक्षामित्रों को नियमित किया जाये। और इनकी सेवाओं को सम्मान दिया जाये।
मार्च 2015 में उत्तरप्रदेश राज्य बनाम चरणसिंह के मामले में फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति वी. गोपाला गौडा ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा 19 और 21 में दी गई आजादी रोजी रोटी की सुनिश्चितता की अवधारणाओं का प्रबंधकों द्वारा उल्लंघन किया गया है। उसके परिवार के सदस्य पीड़ित हैं, क्योंकि उनकी रोजी रोटी प्रबंधकों के मनमाने रवैए के कारण छीन ली गई है। ओल्गा टेलिस व अन्य बनाम मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को उद्‌धृत करते हुए न्यायालय ने प्रबंधकों को लताड़ लगाई, ‘... क्या जीने के अधिकार में आजीविका का अधिकार शामिल है। हमें इसका एक ही उत्तर दिखता है कि यह शामिल है।
और फैसला आजीविका के अधिकार के पक्ष में दिया।
संविधान के अनुच्छेद 21 का दायरा बेहद व्यापक है। जीने के अधिकार में महज इतना ही शामिल नहीं है कि किसी भी व्यक्ति का जीवन सजा-ए-मौत के द्वारा छीना जा सकता है। जीने का अधिकार मात्र एक पहलू है। इसका उतना ही महत्वपूर्ण पहलू है कि आजीविका का अधिकार जीने के अधिकार में शामिल है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति आजीविका के साधनों के बिना जी नहीं सकता। यदि आजीविका के अधिकार को संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार में शामिल नहीं माना जाएगा तो किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार से वंचित करने का सबसे सरल तरीका है, उसके आजीविका के साधनों से उसे वंचित कर देना। ऐसी वंचना न केवल जीवन को निरर्थक बना देती है अपितु जीवन जीना ही असंभव बना देती है। किसी व्यक्ति को उसके आजीविका के अधिकार से वंचित करने का मतलब है, उसे जीवन से वंचित कर देना।
हम आज जब आज़ादी की स्वतंत्रता की चर्चा करते हैं तो हमे अपने बहुमूल्य 16 सालों की याद आती है उस जवानी की याद आती है जो हमने संविधान के अनुच्छेद 21क द्वारा प्रदत्त अधिकार को देश के कर्णधारो तक पहुँचाने में खर्च कर दिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21, व् 39 के तहत “जीने के अधिकार” की व्याख्या करते हुए अपने तमाम निर्णयों में कहा है संविधान के अनुच्छेद 39 के तहत सरकार का यह कर्तव्य है कि वह सभी को आजीविका उपलब्ध कराये। प्रभावितों की आजीविका खत्म होने से अनुच्छेद 39 का भी उल्लंघन होगा।
अब जबकि आम शिक्षामित्र अपने अधिकार के लिए अपने "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के साथ लड़ रहा है तो सर्वोच्च न्यायालय से हम अपना संविधान प्रदत्त अधिकार ले कर रहेंगे और अगली 26 जनवरी और 15 अगस्त पूर्ण मनोयोग से मनाएंगे।।क्योकि
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Sunday, August 14, 2016

बीएड बेरोज़गार प्राथमिक शिक्षक बनने के हक़दार ही नहीं हैं!!

क्या कारण है? बीएड, बीटीसी बेरोज़गार नेता पिछले कई माह से लगातार अनुच्छेद 21क को लेकर पोस्ट लिखते आ रहे हैं, आइये इसका खुलासा करते हैं।
                   दरअसल इन लोगों की अपील का आधार और निर्भरता ही इसी पर है। उन्नीकृष्णन केस के क्रम में संविधान पीठ ने राज्यों को अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्राविधान किया चूँकि बिना शिक्षकों के ये संभव नहीं है इसलिये ये लोग अपनी नियुक्ति न होने को मौलिक अधिकार बताते हैं। बात तो काफी हद तक ठीक भी है लेकिन ये मौलिक अधिकार वरीयता क्रम में आखरी है।
इस संदर्भ में सर्वप्रथम अधिकार शिक्षामित्रों का फिर बीटीसी का। यहाँ बीएड का नाम लिखना धृष्टता होगी। जो हम नहीं करेंगे। चूँकि बीएड कभी भी बेसिक शिक्षा के लिए नहीं माँगा गया बल्कि एनसीटीई ने अपने रेगुलाशन्स में प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति के लिए बीएड को इनवैलिड और इल्लीगल बताया है।
साथ टेट के सम्बन्ध में भी एनसीटीई का स्पष्ट मत है:-
पैरा 9 B
qualifying  the TET  would  not confer  a  right  on  any person  for recruitment/employment as it  is  only  one  of the eligibility  criteria  for appointment.
अर्थात टेट पास कर लेने से कोई व्यक्ति नोकरी पाने का अधिकारी नहीं होगा बल्कि ये एक पात्रता मात्र है।

अब बात करते हैं रिक्त पदों की।
इन बेरोज़गारों ने रिक्त पदों पर अपनी नियुक्ति की मांग की है। हमने इन याचिकाओं का अध्ययन करने पर ये पाया:-
there are more that 4.86 lacs vacant posts in class I to V. The true typed copy of decision of state Assembly dated 14.02.2014
साफ़ है इनलोगो ने अपनी याचिकाओं में 14 फरवरी 2014 के शिक्षामित्रों के समायोजन के कैबिनेट डिसीजन को आधार बनाया है।
ये भूल कर की 170000 पोस्ट को राज्य सरकार रिजर्व कर चुकी थी और 2011 से 2016 तक लगातार इन पदों पर केंद्र द्वारा मानदेय और वेतन की संस्तुति होती रही है।
●इन्हें ये भी नहीं पता कि ये सभी पद केंद्र सरकार के एसएसए कैडर में रखे गए थे और ये राज्य के कैडर की रिक्तियां नहीं थी। राज्य कैडर की रिक्तियों पे वर्तमान में बीटीसी की भर्ती गतिमान है। अवशेष 14000 की सीटें अभी भी सुरक्षित हैं।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार ने ये पड़ताल की कि इन सब "याचिकाओं" में याचियों ने शिक्षामित्रों को हटाने के लिए किस बिंदु को आधार बनाया है? तो वह आधार ये है :-
There was also a challenge to a further Government Order dated 19.06.2014 implementing the decision of the State Government to absorb Shiksha Mitras into regular service.
अर्थात 19 जून 2014 को जारी समायोजन आदेश को चुनौती दी गई है। कहने का अर्थ ये कि 16 क को आधार बना कर बार बार हमला किया गया है।
और हमने अपने वरिष्ठ वकील डॉ कॉलिन गोन्साल्विस के माध्यम से इन सब बिन्दुओ का मुंह तोड़ जवाब देने की तैयारी की है। क्योकि
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

Thursday, August 11, 2016

बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों का दूरस्थ बीटीसी रद्द करवाना दिवा स्वप्न है।

दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण के सन्दर्भ में कुछ शुलभ-शौचालय रूपी धूर्तों ने जो भ्रांतियां फैलाई हैं उनका संक्षिप्त रूप से निराकरण करने की चेष्टा कर रहे हैं, आशा करते हैं आप इसपर गंभीरता से विचार करेंगे!

1. शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण क्या हैं?

उ०- 1 अप्रैल 2010 को जब पूरे देश में आरटीई एक्ट लागू हो गया तो जून 2010 में केंद्र सरकार द्वारा एक गाइड लाइन राज्य सरकार को भेजी गई जिस में कहा गया कि राज्य के पास जो भी "अप्रशिक्षित शिक्षक" हों उनको 6 माह में प्रशिक्षण शुरू कराया जाये। चूँकि आरटीई लागू हो चुका है। साथ ही एक प्रोफार्मा भी भेजा गया। जिस में सभी शिक्षकों का ब्यौरा था।
राज्य द्वारा लगभग 172000 शिक्षामित्रों का ब्यौरा केंद्र की राज्य प्रतिनिधियों की बैठक और बजट प्रस्ताव की बैठक में प्रस्तुत किया। और दिसम्बर 2010 में इन अप्रशिक्षित अध्यापकों अर्थात शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण का प्रस्ताव एनसीटीई को भेजा गया जो स्वीकार नहीं हुआ और पुनः जनवरी 2011 में संशोधित प्रस्ताव भेजा गया जिसे एनसीटीई द्वारा मंजूरी दे दी गई।
तब राज्य द्वारा केंद्र को अवगत कराया गया कि राज्य को 124000 स्नातक शिक्षामित्रों को एनसीटीई प्रशिक्षण की स्वीकृति दे चुकी है और इन्हें प्रशिक्षण दे कर नियमित किया जायेगा।अवशेष पर स्नातक होने पर विचार होगा। और केंद्र ने वर्ष 2011 में प्रशिक्षण का बजट पास कर दिया।
शिक्षामित्रों को दूरस्थ माध्यम से डीएलएड/बीटीसी प्रशिक्षण प्रदान करने की अनुमति प्राप्त कर प्रशिक्षण कराना आरम्भ कर 'नियमित शिक्षक' पद समायोजन का आधार स्थापित कर दिया गया! विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार उपरोक्त प्रशिक्षण सिर्फ "सेवारत-शिक्षक" अपने शैक्षणिक उन्नयन हेतु ही प्राप्त कर सकते हैं। जिसे इसी परिप्रेक्ष्य में कराया भी गया।

2. मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशिक्षण पर पारित आदेश क्या हैं?
उ०- वर्ष 2011 में ही अन्य राज्य भी उ प्र राज्य के शिक्षामित्रों की तरह दूरस्थ माध्यम से प्रशिक्षण करवाने के लिए प्रस्ताव भेजने लगे और उक्त राज्यों को भी एससीईआरटीई द्वारा प्रशिक्षण दूरस्थ बीटीसी करवाने के प्रस्तावों को एनसीटीई द्वारा मंजूरी दे दी गई।
उक्त सब की जानकारी माननीय सुप्रीम कोर्ट कार्यालय कमिश्नर के प्रतिनिधित्त्व में पूरा प्रशिक्षण संबंधी पूरा ब्यौरा माननीय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के सम्मुख रखा गया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सम्मुख एक हाई पॉवर कमेटी द्वारा उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाने के लिए जो कुछ भी किया गया था यहाँ तक की समायोजन तक की जानकारी सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख रखी।
इस पर माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय ने इस पर टिप्पणी दी कि कमेटी ने प्रशंसनीय कार्य किया है इसका अक्षरशः पालन करवाया जाये।*

3. दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण की वर्तमान स्थिति?
उ०- वर्तमान समय में प्रशिक्षण की अनुमति देने वाली संस्था NCTE  और हाई कोर्ट शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण को शिक्षक-पद पर नियुक्ति हेतु राज्य सरकार की तरह वैध मानती है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण गत दि० ०१ अगस्त को मा० उच्च न्यायालय और राज्य सरकार द्वारा सहर्ष स्वीकार करने पर दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षामित्रों को 16000 बीटीसी प्रशिक्षित शिक्षक नियुक्ति में प्रतिभाग करने हेतु आदेशित कर दिया हैं। अतः अब ऐसे शिक्षामित्र शिक्षक नियुक्ति हेतु भी पात्र हो चुके हैं। "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियों* ने सुप्रीम कोर्ट बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों की ट्रेनिंग पर डाली गई हर याचिका को खारिज करवाने की तैयारी की है। हम लोग शतप्रतिशत आश्वस्त है कि प्रशिक्षण पर कोई हमारा बाल बांका नहीं कर सकेगा।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Wednesday, August 10, 2016

शिक्षामित्र तो आरटीई एक्ट के दायरे में आते हैं।।

कितनी अजीब बात है वो लोग जो खुद संविधान के अनुच्छेद 21क और राज्य सरकार की अनुकम्पा से एडहॉक पे नियुक्ति पा चुके हैं या फिर पाने की कोशिश में हैं ऐसे बीएड/बीटीसी बेरोज़गार उन शिक्षामित्रों को 21क पे बहस होगी बता रहे हैं जिन शिक्षामित्रों की नियुक्ति ही 21-A की बाध्यता के कारण हुई।

आइये हम उन तथाकथित बेरोज़गारों के नेताओं का सामान्य ज्ञान बढ़ा दें कि:- अनुच्छेद 21क और उसके अधीन निर्मित आरटीई एक्ट की वैधानिकता पर
पांच जजों की संविधान पीठ जिस में Chief Justice R.M. Lodha Justices A.K. Patnaik, *Dipak Misra, S.J. Mukhopadhaya and Ibrahim Kalifulla शामिल थे, अनुच्छेद 21क पर वृहद् चर्चा कर 174 पृष्ठ का फैसला सुना चुकी है। और अब इस पर किसी ख़ास बहस की गुंजाईश नहीं है। और अगर होगी तो अनुच्छेद 40, 41, और विशेष रूप से 43 पे होगी।

अब आइये हम बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों को हाई कोर्ट के फैसले में से वो खंड पढ़वा दें जो इनकी हार का कारण बनेगा। जिसे सीजे ने इन शब्दों में लिखा:-
it would now be necessary to deal with the regulatory provisions contained, firstly in the NCTE Act and the later enactment of the RTE Act of 2009.
अर्थात ये ज़रूरी होगा कि शिक्षामित्र एनसीटीई और आरटीई एक्ट के दायरे में लाये जाएँ।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी* अपने सीनियर वकील डॉ कॉलिन गोंजाल्विस और फ़िडेल सेबेस्टियन के माध्यम से 21क पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ चंद्रचूर्ण के ही उक्त शब्दों को साक्ष्य और तथ्यों के साथ सिद्ध करने की तैयारी की है।

जाके कोई कह दे, शोलों से, चिंगारी से।।

फूल इस बार खिले हैं, बड़ी तैयारी से।।

हम शिक्षामित्रों को एनसीटीई एक्ट और एनसीटीई के नियमानुसार नियुक्त होना सिद्ध करने में सक्षम हैं।बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के नेता तैयार रहे उनका वास्ता अब आम शिक्षामित्रों से पड़ा है। क्योंकि अब

★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Monday, August 8, 2016

शिक्षामित्रों का भविष्य सुरक्षित है!

"When all else is lost, the future still remains." - Christian Nestell
"जब सब कुछ खत्म हो जाता है, भविष्य तब भी बचा रहता है।"

हाई कोर्ट के फैसले के बाद हमने अपनी लड़ाई इसी सिद्धांत पर लड़ने की ठानी। और आज हम आश्वस्त हैं।
ये लड़ाई अब आम शिक्षामित्र की है। जिसने अपनी गलतियों से सीखा और खुद को जीत के क़ाबिल बनाया है। आइये बताते हैं कैसे?:-

शिक्षमित्रों की ओर से दाखिल हलफनामे का बिंदु था:-
Whether the Government Order dated 26 May 1999 can be regarded
as a valid exercise of power under Article 162 of the Constitution, where
the Service Rules of 1981 were silent in regard to the appointment of
untrained teachers;
अर्थात- यद्दपि 1981 के सेवा नियम अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध मे खामोश थे। ऐसे में
दिनांक 26 मई 1999 के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 162 की शक्ति का मान्य प्रयोग माना जा सकता है।

शिक्षामित्रों के पैरवीकारों की और से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 162 के परन्तुक द्वारा मानी जाए।
आइये पहले अनुच्छेद 162 को समझते हैं।।

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 162 की व्याख्या करते हुए यह धारित किया है कि अनुच्छेद 162 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल उन स्थानों पर हो सकता है जहां संसद अथवा विधानसभा द्वारा पारित कोई कानून उपलब्ध न हो। जहां कोई कानून उपलब्ध हो वहां उस कानून के विपरीत कोई भी परिपत्र अनुच्छेद 162 के अंतर्गत जारी नहीं किया जा सकता।
अब जबकि हम सब जानते हैं कि शिक्षामित्र योजना 1999 में राज्यपाल की अनुच्छेद 309 की शक्तियों का प्रयोग कर लागू की गई तो ये अनुच्छेद 162 के तहत कैसे आ गई।

बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के वकील ने शिक्षामित्रों के हलफनामे की इसी कमी को पकड़ा और उमादेवी केस को सामने ला के रख दिया।
बस इतना करना था कि शिक्षामित्रों का पूरा का पूरा केस धराशायी हो गया।
अभी भी बीएड/बीटीसी बेरोज़गार अपनी पोस्ट्स में हमें उमादेवी केस समझाते रहते हैं।
उनकी इस ग़लतफ़हमी को होने वाली सुनवाई में मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी* वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोंजाल्विस माध्यम से दूर कर देंगे।
अनुच्छेद 162 के स्थान पर 309 पुनर्स्थापित होगा। शिक्षामित्र शिक्षक हैं और शिक्षक ही रहेंगे।
बीएड/बीटीसी बेरोज़गारो के दिवा स्वप्न कभी पुरे नहीं होंगे।
यहाँ हम आप सब साथियों को पुनः आश्वस्त करते हैं कि हमने हाइकोर्ट में हुई अपनी सभी कमियों को चिन्हित कर लिया है और उनका इलाज भी खोज रखा है। अब हम हाई कोर्ट के उन शिक्षामित्रों के अन्य पैरवीकारों की गलतियों को नहीं दोहराने वाले जो उन्होंने कीं। और जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Saturday, August 6, 2016

शिक्षमित्रों का मिशन सुप्रीम कोर्ट अब जीत की ओर!!

बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों ने पिछले 5 सालों से लगातार दो सवालों पे फोकस किया और शिक्षामित्रों को हाईकोर्ट में मात दे दी।
और वो दो सवाल हैं:-
◆शिक्षामित्र दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण अवैध क्यों नहीं है?
◆शिक्षमित्र अप्रशिक्षित अध्यापक है या संविदा कर्मी/स्वयंसेवी शिक्षा सहयोगी?
अब सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ इन्ही 2 सवालों के इर्द गिर्द पूरी बहस होना है।
अब मामले के दूसरे पहलु पर गौर करते हैं। शिक्षामित्रों की कोर्ट पैरवी के नाम पर धन उगाही करने वाली टीमें अब तक इन दोनों सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
ज़ाहिर है उनके पास कहने को कुछ नहीं है। यहाँ सवाल गोपनीयता का नहीं है क्योंकि इस पर हाईकोर्ट आर्डर के दर्जन भर पन्ने रंगे पड़े हैं। इसके वावजूद मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के अलावा सभी शिक्षामित्र पैरवीकार वो ही तथ्य पकडे बैठे हैं जो राज्य सरकार हाईकोर्ट में रख चुकी है।
लीजिये हम आप के सामने रखते हैं।
राज्य सरकार ने पक्ष रखा कि शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण एनसीटीई के नियम अनुसार कार्यरत शिक्षकों के लिए है।
open and distance learning courses provided for the imparting of training to 'working teachers'.
और शिक्षामित्र कार्यरत शिक्षक हैं।
◆मगर राज्य सरकार का ये तर्क कोर्ट ने रद्द कर दिया,
आखिर क्यों ?

इसके बाद फिर एक और दिलचश्प बात कही कि
शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 45 का पालन करते हुए भारत सरकार के आदेशों के अनुपालन में की गई और इनकी योग्यता का निर्धारण भी उसी के नियमानुसार किया गया।
State Government of appointing Shiksha Mitras was in order to implement the provisions of Article 45 of the Constitution and in pursuance of the policy of SSA which was implemented by the Union Government.
◆उपरोक्त तथ्यों के कोर्ट में रखे जाने के वावजूद  समायोजन क्यों रद्द किया गया?
कुल मिलाकर राज्य सरकार और शिक्षामित्र पैरवीकार मिलकर भी उन दोनों सवालों के संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे सके। अब चूँकि लिखित बहस का तरीका अपना कर कोर्ट ने मुकद्दमा अंतिम चरण में लगा दिया है।
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में भी यथास्थिति है वर्ना क्या कारण है कि "मिशन सुप्रीम कोर्ट" वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार* & केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियों के अलावा इस मुद्दे पर कोई तथ्य नहीं रख सका है। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह ने इन दोनों सवालों पर पूरी रिसर्च कर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, राज्य सरकार की नियमावली व् आदेशों, संवैधानिक उपबन्धों और केन्दीय क़ानूनों से जवाब तैयार कर अपने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस को सौंपे हैं। और यही कारण है कि हम अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Thursday, August 4, 2016

शिक्षामित्रों को बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों की तरह पात्रता सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है।।

★शिक्षामित्रों को बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों की तरह पात्रता सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है।
ये एक ऐसा सत्य है जिसे बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के स्वयंभू और तथाकथित आरटीई एक्टिविस्ट नेता स्वीकारना नहीं चाहते। बल्कि ये कहना ज़्यादा ठीक होगा कि चंदे के धंधे के कारण मानना नहीं चाहतेहैं।
एक सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी ये स्वीकार करेगा कि कोई भी पात्रता परीक्षा नौकरी पाने के इच्छुक व्यक्ति को देना होती है न कि 15 साल से कार्यरत शिक्षक को।
मीडिया में लगातार टेट से छूट मिलने या न मिल पाने के समाचार देखने सुनने को मिलते हैं। जबकि ये सभी स्वीकार करते हैं कि शिक्षामित्र पूर्व नियुक्त शिक्षक हैं।
आईये बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों का ज्ञानवर्धन करते हैं:-
माननीय सुप्रीम कोर्ट कार्यालय कमिश्नर और एमएचआरडी एनसीटीई प्रतिनिधियों ने अब से ठीक तीन साल पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक बताते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को एमएचआरडी भारत सरकार ने अपने हलफनामे के साथ साथ अनुच्छेद 21क को लागू करने के लिए की गई कार्यवाही का विवरण भी माननीय सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया।
●ये सब साक्ष्य "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* ने अपने अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस को उपलब्ध करवाये  हैं।
हमें उम्मीद है कि ये नेता ये मानने से इनकार कर देंगे।
चलिए एक और खुलासा करते हैं।

◆बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों ने हाई कोर्ट इलाहबाद के मुख्य न्यायाधीश के 12 सितम्बर के फैसले को इतने आक्रामक रूप में प्रचारित प्रसारित किया कि शिक्षामित्र इसी फैसले को सब कुछ मान बैठे जबकि इस फैसले कुछ माह पहले इन्ही बिन्दुओ जैसे नियुक्ति नियम विरुद्ध है, आरक्षण का पालन आदि इत्यादि पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला शिक्षामित्रों के पक्ष में आ चुका है। लेकिन इसके विषय में कोई ज़ुबान नहीं खोलता, न शिक्षमित्र नेताओं को पता न बेरोज़गारों को।
शिमला हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि एक सप्ताह में जो भी लोग हैं उन्हें नियमित किया जाये। वहां भी बेरोजगार इस बात पर सर पटक रहे हैं। हमारी पूरी सहानुभूति बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के साथ है। लेकिन ये कहाँ का न्याय और नैतिकता है कि कार्यरत शिक्षक को हटाओ और इन बेरोज़गारों को लगाओ।
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह कोर्ट में शिक्षामित्रों को 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पूर्व नियुक्त शिक्षक सिद्ध करने में सक्षम है और इसलिये शिक्षामित्रों को किसी पात्रता परीक्षा(टेट) देने की ज़रूरत नहीं है। न ही किसी टेट से छूट के पत्र की। भ्रामक खबरों पर ध्यान न दें।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

अवशेष शिक्षामित्रों सहित सभी पार्टीज 17 अगस्त तक रिटेन सबमिशन जमा करें: सुप्रीम कोर्ट।।

◆27 जुलाई की सुनवाई काआदेश जारी।

★शिक्षक नियुक्ति और  शिक्षामित्र समायोजन केस के पर फैसला देने के लिए कोर्ट ने लिखित बहस का रास्ता चुना।
◆जल्द फैसला होने की उम्मीद बढ़ी।
◆अवशेष शिक्षामित्रों और नई डाली गई सभी एसएलपी और याचिकाओं की सुनवाई अब 24 अगस्त को होगी।
◆अवशेष शिक्षामित्रों और सभी पार्टीज कोे 17 अगस्त तक रिटेन सबमिशन जमा करने की छूट दी गई है।

27 जुलाई को शिक्षक भर्ती और शिक्षामित्र समायोजन केस पर सुनवाई होना थी किन्तु वकीलों की भीड़ और लिखित सबमिशन जमा न होने से ये केस नहीं सुने जा सके।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्विस, अधिवक्ता फ़िडेल सेबेस्टियन और अधिवक्ता(एओआर) ज्योति मेंदिरत्ता उपस्थित रहे।
अब चूँकि मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह द्वारा लिखित बहस के बिंदु कोर्ट में जमा किये जा चुके हैं, और केस मेरिट पे आने पे अकाट्य साक्ष्यों के साथ हाइकोर्ट के फैसले के हर हर बिंदु का जवाब तैयार कराया गया है।
मिशन सुप्रीम कोर्ट के वर्किंग ग्रुप मेंम्बर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियो* ने अपने वकील के माध्यम से अपनी बात कोर्ट के समक्ष रखने की पूरी तैयारी की है। अब बस इंतज़ार है तो बस फाइनल बहस का।
अतः समूह से जुड़े लोग अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Tuesday, August 2, 2016

शिक्षामित्रों की डीबीटीसी स० अध्यापक बनाने को ही करवाई गई!


लखनऊ खंडपीठ का आदेश कल से लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। टेट पास शिक्षामित्र अपनी ढपली अपना राग गा रहे हैं, और नॉन टेट शिक्षामित्र ट्रेनिंग को समायोजन बचाने की गारंटी के रूप में देख रहे हैं।
इस सब के बीच "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के लीगल वर्किंग मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* का स्पष्ट मत है कि लखनऊ खंडपीठ के आदेश का सुप्रीम कोर्ट में न तो कोई इस्तेमाल है न ही कोई लाभ।
शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण वर्ष 2011 से ही हाईकोर्ट की कसौटी पर खरा उतरता रहा है और अब सुप्रीम कोर्ट में भी खरा साबित होगा।

बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के सामान्य-ज्ञान के लिए बताते चलें कि मात्र उत्तर प्रदेश ही नहीं उड़ीसा और बिहार में भी डीबीटीसी का प्रशिक्षण एससीईआरटी ने ही करवाया है और इसी के आधार पर नियुक्ति होती रही हैं।अब चर्चा इसकी कि अब तक कोर्ट का इस ट्रेनिंग को लेकर क्या नज़रिया रहा।
वर्ष 2011 में जब ट्रेनिंग शुरू होने जा रही थी तभी से बीएड बेरोज़गार इसके विरोध में आने लगे थे। मुकदमा हुआ लेकिन कोर्ट ने तब भी कहा कि नहीं ये सही है। और फैसला शिक्षामित्रों के पक्ष में रहा।
फिर 12 सितम्बर 2015 के पूर्णपीठ के फैसले में भी बीएड/बीटीसी अपने बुरे इरादे कामयाब होते नहीं दिखे।बृहद पीठ ने समायोजन तो रद्द किया लेकिन ट्रेनिंग को वैध ही माना।

इस तरह 12 सितम्बर को ही ट्रेनिंग मुद्दे पर संतोष कुमार मिश्र की ट्रेनिंग के विरुद्ध रिट पर भी सुनवाई कर के सीजे ने ख़ारिज कर दी।इसी तरह के कई मुक़दमे आते रहे और ख़ारिज होते रहे। यहाँ बताते चलें कि ये लोग पुनः अपनी ये 12 सितम्बर वाली याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं।
जबकि 2011 से 1 अगस्त 2016 तक लगातार असफल होने के बाद भी इनका मन नहीं भरा है। ये एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से मुंह की खाएंगे।
यहाँ उल्लेखनीय है कि हाइकोर्ट की इलाहबाद खंडपीठ का ही फैसला है जिसमें जज साहब ने ये भी लिख दिया कि :
The purpose of training the untrained Shiksha Mitras is to make them eligible for appointment as Assistant Teachers
माननीय जज महोदय के ये शब्द आज अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए और शिक्षामित्र आज सहायक अध्यापक हैं और रहेंगे। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह ने सुप्रीम कोर्ट में माननीय न्यायाधीश महोदय की कलम से ये ही शब्द दोहराये जाने की पूरी तैयारी की है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Monday, August 1, 2016

शिक्षामित्र प्रशिक्षण को हाईकोर्ट की पूर्णपीठ के बाद लखनऊ खंडपीठ ने भी वैध बताया।

◆बीटीसी/बीएड बेरोज़गारों के मन की मुराद अंशतः पूरी हुई!
◆बीटीसी/बीएड बेरोज़गार चाहते थे शिक्षामित्र खुली भर्ती में आएं और कोर्ट ने टेट पास शिक्षामित्रों को सभी बीटीसी भर्तीयों में शामिल होने का रास्ता खोल दिया।
◆बीटीसी बेरोज़गार लगातार शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग अवैध करवाने और उनको बाहर करने के लिए रिट पे रिट डालते रहे हैं।
◆आज से बीटीसी अभ्यर्थी खुद अपने लिए निकली भर्ती में आने में कडा मुक़ाबला करना पड़ेगा।

आज हुई सुनवाई में लखनऊ खंडपीठ ने शिक्षामित्रों को बीटीसी भर्ती में शामिल होने को लेकर पड़ी याचिका को निस्तारित करते हुए कोर्ट बीटीसी भर्ती में शामिल होने का आदेश जारी कर दिया।

12 सितम्बर के फैसले में एनसीटीई के वकील की हठधर्मी और मक्कारी के वावजूद इलाहाबाद हाइकोर्ट की पूर्णपीठ ने शिक्षामित्रों का दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण वैध माना था। और ये फैसला बार बार के विरोध के बाद भी 15000 और 16448 बीटीसी भर्ती पे भी अटल रहा।
अब ये बात अपनी जगह सिद्ध हो गई कि शिक्षामित्रों को अयोग्य बताने वाले बेरोज़गार खुद उनसे मुक़ाबला न हो इसके लिए झटपटा रहे हैं।

"मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार और केसी सोनकर और साथियों ने आज आये फैसले और इससे पूर्व इलाहबाद हाइकोर्ट की एकल पीठ से अधिवक्ता अशोक खरे द्वारा कराये आधा दर्जन फैसलों का अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि:-
आज लखनऊ खंडपीठ से आये फैसले का सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में कोई भी लाभ नहीं होने वाला।
ये फैसला मात्र बीटीसी बेरोज़गारों को हतोत्साहित करने का कार्य करेगा।
अब जबकि बीटीसी बेरोज़गार हतोत्साहित हैं तो हम अपने लक्ष्य को आसानी से पा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट में डीबीटीसी ट्रेनिंग के विरुद्ध पड़ी याचिकाएं रद्दी की टोकरी के हवाले हों इस के लिए हमारी तैयारी पूर्ण है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।