Saturday, July 30, 2016

बीएड बीटीसी बेरोज़गारों को आरटीई एक्ट न समझ पाने से गलतफहमी हुई।


कल एक पोस्ट जो हमारी पोस्ट 21क है सुरक्षा कवच को ध्यान में रख कर लिखी गई। जिसे संवैधानिक साजिश के नाम से पोस्ट किया गया। उक्त पोस्ट पूर्णतयः मनगढ़ंत तथ्यों पर आधारित थी।
आइये सच्चाई से अवगत कराते हैं:-
जैसाकि हम जानते हैं कि
अनुच्‍छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ।
और आरटीई अधिनियम उपयुक्‍त रूप से प्रशिक्षित अध्‍यापकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करता है।
और इसके लिए एक्ट की धारा 23(2) में स्पष्ट लिखा गया एक शिक्षक के रूप में नियुक्त व्यक्ति 5 वर्ष में न्यूनतम अर्हता धारण करेगा। आरटीई एक्ट में कहीं भी पूर्णकालिक या नियमित शिक्षक शब्द का प्रयोग तक नहीं हुआ है। दूसरी तरफ चंदे का धंधा चमकाने वाले लोग शिक्षामित्रों को इंगित कर टेट लागू होने की बात ये कह के करते हैं कि वे पूर्णकालिक शिक्षक नहीं है इसलिए उनपे टेट अर्हता लागू है। जबकि एनसीटीई की 23 अगस्त 2010 की गाइड लाइन का पैरा 4 व् 5 शिक्षामित्रों पर टेट लागू नहीं बताता है। मिशन सुप्रीम कोर्ट के वर्किंग ग्रुप के रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों ने आरटीई एक्ट और एनसीटीई के नियमों पर विस्तृत अध्ययन किया है।
इसकी गाइड लाइन तै करने के लिए आरटीई के अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत और एनसीटीई को आरटीई अधिनियम की धारा 29 के शैक्षिक प्राधिकारी क रूप में एनसीटीई की नियुक्ति के लिए अधिसूचना दिनांक 31 मार्च, 2010 को जारी करदी गई।
और नवीन नियुक्ति के लिए 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई ने अपना नोटिफिकेशन जारी कर बीएड डिग्री धारकों को मात्र "एक वर्ष" में प्राथमिक में जाने की छूट दी गई, और सपा सरकार की राजनैतिक अनुकम्पा के चलते इन अयोग्य उम्मीदवारों को 2014 तक की छूट केंद्र से अनुरोध कर ले ली गई।

एक बीएड या बीटीसी बेरोज़गार सुप्रीम कोर्ट का 9 फरवरी 2011 का आदेश ज0 पी स्थाशिवम व बी0 एस0 चौहान (स्टेट आँफ उडीसा बनाम ममता मोहन्ती ) उल्लेखित कर के बताते हैं कि इस में बेसिक के अध्यापक की योग्यता पर टिप्पणी की गई है।
जबकि उनको पता होना चाहिए कि ये उच्च शिक्षा का मामला है न कि अनुच्छेद 21क का।
दरअसल ये फेसबुकिये ज्ञानी बिना किसी जांच पड़ताल के इधर उधर से टीप के अपने बेरोज़गार साथियों को खुश करने के लिए पोस्ट कर देते हैं।
जिसमे लेश मात्र भी सत्यता नहीं होती। मिशन सुप्रीम कोर्ट की पोस्ट केंद्र और राज्य के प्रमाणिक दस्तावेज़ोपर आधारित पोस्ट होती हैं। हवा हवाई नहीं होती।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Thursday, July 28, 2016

टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना नहीं।।

प्रदेश के निजी कालेजों से पैसे के बल पर बीएड बीटीसी कर के टेट 2011 में फर्जीबाड़े के सहारे बेसिक शिक्षा में घुसपैठ की। और फिर बेसिक शिक्षा की रीढ़ कहे जाने वाले शिक्षामित्रों के समायोजित करने का विरोध किया जाने लगा।
जबकि उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति के बाद विद्यालय नियमित खुलने लगे ऐसा पहली बार हुआ। और प्रदेश की बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण वातावरण बना।

◆क्या वास्तव में शिक्षामित्र की शैक्षिक योग्यता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानक अनुसार नहीं है?

●आइये इस पर एनसीटीई और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दृष्टीकोण जानते हैं।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वर्किंग ग्रुप मेंबर रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* ने इस पर विस्तृत साक्ष्य जुटाए हैं।
जिससे हम ये सिद्ध करने में सक्षम हैं कि एनसीटीई के विभिन्न रेगुलाशन्स में दिए गए मानको को समायोजित शिक्षक निश्चित रूप से पूरा करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं शिक्षक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा में दिए गए मानक के अनुसार समायोजित शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के योग्य हैं। एमएचआरडी के प्रमाणिक दस्तावेज़ों के आधार पर ये सिद्ध होता है कि शिक्षामित्र वास्तविक रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले शिक्षक थे, है और रहेंगे।

जो लोग टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना बता कर शिक्षामित्रों को मानसिक रूप से उत्पीड़ित कर रहे हैं उन्हें नियमों का ज्ञान नहीं है। और वे चाहते हैं कि शिक्षामित्र भयाक्रांत हों।
बीएड बीटीसी बेरोज़गार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का नारा लगा के टेट को ही इस का आधार बता कर अपनी अल्पज्ञता दर्शाते हैं।
कोई पात्रता परीक्षा कभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी नहीं होती। इसके लिए मात्र अनुभव और प्रशिक्षण ही एक मात्र आधार और गारंटी होती है। ये तथ्य एनसीटीई और शिक्षक प्रशिक्षण जुडी सभी सभी संस्थाएं मानती हैं।
यहाँ हम पुनः अवगत करा दें कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में शिक्षामित्रों के योगदान की बात आएगी तो हम अपने अकाट्य साक्ष्यों से उनका संतुष्टिपूर्ण जवाब देंगे।
★आजीविका और मन सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना नहीं।।


उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति के बाद विद्यालय नियमित खुलने लगे। और प्रदेश की बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण वातावरण बना।
प्रदेश के निजी कालेजों से पैसे के बल पर बीएड बीटीसी कर के टेट 2011 में फर्जीबाड़े के सहारे बेसिक शिक्षा में घुसपैठ की। और फिर बेसिक शिक्षा की रीढ़ कहे जाने वाले शिक्षामित्रों के समायोजित करने का विरोध किया जाने लगा।

◆क्या वास्तव में शिक्षामित्र की शैक्षिक योग्यता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानक अनुसार नहीं है?

●आइये इस पर एनसीटीई और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दृष्टीकोण जानते हैं।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वर्किंग ग्रुप मेंबर रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* ने इस पर विस्तृत साक्ष्य जुटाए हैं।
जिससे हम ये सिद्ध करने में सक्षम हैं कि एनसीटीई के विभिन्न रेगुलाशन्स में दिए गए मानको को समायोजित शिक्षक निश्चित रूप से पूरा करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं शिक्षक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा में दिए गए मानक के अनुसार समायोजित शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के योग्य हैं। एमएचआरडी के प्रमाणिक दस्तावेज़ों के आधार पर ये सिद्ध होता है कि शिक्षामित्र वास्तविक रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले शिक्षक थे, है और रहेंगे।

जो लोग टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पैमाना बता कर शिक्षामित्रों को मानसिक रूप से उत्पीड़ित कर रहे हैं उन्हें नियमों का ज्ञान नहीं है। और वे चाहते हैं कि शिक्षामित्र भयाक्रांत हों।
बीएड बीटीसी बेरोज़गार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का नारा लगा के टेट को ही इस का आधार बता कर अपनी अल्पज्ञता दर्शाते हैं।
कोई पात्रता परीक्षा कभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी नहीं होती। इसके लिए मात्र अनुभव और प्रशिक्षण ही एक मात्र आधार और गारंटी होती है। ये तथ्य एनसीटीई और शिक्षक प्रशिक्षण जुडी सभी सभी संस्थाएं मानती हैं।
यहाँ हम पुनः अवगत करा दें कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में शिक्षामित्रों के योगदान की बात आएगी तो हम अपने अकाट्य साक्ष्यों से उनका संतुष्टिपूर्ण जवाब देंगे।
★आजीविका और मन सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

संविधान का अनुच्छेद 21 शिक्षामित्र समायोजन का एक प्रमुख संरक्षक और सुरक्षा कवच है।

संविधान के अनुच्छेद 21 को आधार बना कर शिक्षामित्र समायोजन केस में कुछ बीएड और बीटीसी बेरोजगार लगातार लेख लिख कर बिन सर पैर की उड़ाते रहते हैं।
अभी 27 जुलाई को भी शिक्षामित्रों और बीटीसी बीएड धारकों के नेताओं द्वारा माननीय न्यायधीश महोदय द्वारा अनुच्छेद 21 व 21क पर टिप्पणी किये जाने को लेकर एक भयाक्रान्त वातावरण बनाने की कोशिश की गई।

जबकि ये शिक्षामित्रों के समायोजन और नौकरी को सुरक्षित रखे जाने का एक प्रमुख आधार स्तम्भ है। बल्कि शिक्षामित्रों का समायोजन बनाये रखने में अनुच्छेद 21 और 21क ही एक अभेद्य सुरक्षा कवच है। "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप के रबी बहार, केसी सोनकर और साथी* इस पर अपने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस से विस्तृत चर्चा कर चुके हैं।
आइये आप को भी बताते हैं:-
आजीविका का अधिकार जीने के अधिकार में शामिल है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति आजीविका के साधनों के बिना जी नहीं सकता। यदि आजीविका के अधिकार को संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार में शामिल नहीं माना जाएगा तो किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार से वंचित करने का सबसे सरल तरीका है, उसके आजीविका के साधनों से उसे वंचित कर देना। ऐसी वंचना न केवल जीवन को निरर्थक बना देती है अपितु जीवन जीना ही असंभव बना देती है। किसी व्यक्ति को उसके आजीविका के अधिकार से वंचित करने का मतलब है, उसे जीवन से वंचित कर देना।

मार्च 2015 में उत्तरप्रदेश राज्य बनाम चरणसिंह के मामले में फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति वी. गोपाला गौडा ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा 19 और 21 में दी गई आजादी रोजी रोटी की सुनिश्चितता की अवधारणाओं का प्रबंधकों द्वारा उल्लंघन किया गया है। उसके परिवार के सदस्य पीड़ित हैं, क्योंकि उनकी रोजी रोटी प्रबंधकों के मनमाने रवैए के कारण छीन ली गई है। ओल्गा टेलिस व अन्य बनाम मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को उद्‌धृत करते हुए न्यायालय ने प्रबंधकों को लताड़ लगाई, ‘... क्या जीने के अधिकार में आजीविका का अधिकार शामिल है। हमें इसका एक ही उत्तर दिखता है कि यह शामिल है।
संविधान के अनुच्छेद 21 का दायरा बेहद व्यापक है।

इसी तरह एक अन्य मामले में तथ्य इस प्रकार थे- श्रमिक चरण सिंह 6 मार्च 1974 को ट्यूबवेल ऑपरेटर के पद पर बतौर अस्थायी कर्मचारी उप्र के मत्स्य विभाग में भर्ती किया गया था। 22 अगस्त 1975 को उसे यह कहते हुए सेवा से मुक्त कर दिया कि चूंकि वह अस्थायी तौर पर भर्ती किया गया था, इसलिए उसे नौकरी पर रखने की आवश्यकता नहीं है। इस कार्रवाई के खिलाफ श्रमिक ने श्रम कार्यालय में कार्यवाही प्रारंभ की। मामला श्रमिक अदालत में भेजा गया। श्रमिक अदालत ने फैसले में मत्स्य विभाग को उक्त श्रमिक को समकक्ष पद पर पुरर्स्थापित करने का आदेश दिया, जो 24 फरवरी 97 से प्रभावी होने का निर्देश दिया। परंतु बेकारी के दिनों का कोई वेतन नहीं दिया।

श्रमिक को मछुआरा का पद देते हुए कहा कि यह ट्यूबवेल ऑपरेटर के समकक्ष है। परंतु श्रमिक इस पद पर काम करने नहीं आया। विभाग ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका लगाई कि 24 फरवरी से 31 जनवरी 2005 तक श्रमिक को कोई वेतन नहीं दिया जाएगा। इस पर उच्च न्यायालय ने विभाग के प्रबंधकों को फटकार लगाई कि श्रमिक के इतने साल प्रबंधकों ने बर्बाद कर दिए। उसे इस अवधि का वेतन दिया जाए। विभाग ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया। उसे 22 अगस्त 1975 से फैसले की तिथि तक 50 फीसदी बकाया वेतन देने का निर्देश दिया। साथ ही 24 फरवरी 1997 से 31 जनवरी 2005 तक हाईकोर्ट द्वारा पूर्ण बकाया वेतन को सही ठहराते हुए संशोधित वेतनमान के आधार पर श्रमिक को चार हफ्ते में भुगतान करने का आदेश दिया।
ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं हमारे वकील द्वारा अनुच्छेद 21 और 21क पर विस्तृत और अकाट्य साक्ष्यों के साथ तैयारी की गई है।
हम एक बार फिर आप सब को जीत के प्रति आश्वस्त करते हैं। किसी बीएड बीटीसी बेरोज़गार और बड़े बड़े वकीलों के पैनलों के बहकावे में न आये।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

Wednesday, July 27, 2016

21क के अधीन शिक्षामित्रों का समायोजन वैध!!

शिक्षामित्र समायोजन का मामला जब से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है तब से ही बीएड और बीटीसी बेरोजगारों के स्वयं भू आरटीई एक्टिविस्ट कहलाने वाले नेता शिक्षामित्रों को संविधान के अनुच्छेद 21क (86 वां संशोधन) के नाम पर अपने लेखों के माध्यम बच्चों की डराने की कोशिश करते रहे हैं।
आज 27 जुलाई की सुनवाई में भी तथाकथित बेरोज़गारों द्वारा 21क पर माननीय न्यायाधीश महोदय की टिप्पणी का उल्लेख उनके आलेखों में महिमामंडन के साथ किया गया है।
आइये हम उन्हें उन्ही की भाषा में वो जवाब देते हैं जो हमारे वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस भरी अदालत में देंगे।
हमारा जवाब:-
फरवरी 2010 में अंतिम तौर पर तैयार आरटीई एक्ट के आदर्श नियम राज्य सरकारों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करने के लिए दिशानिर्देश का काम करता है। वैसे कानून को लागू करने में ज्यादा सफलता के लिए इन नियमों में कुछ पर पुनर्विचार की जरुरत है।  इस महत्वपूर्ण विषय पर गंभीर चर्चा के लिए "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वर्किंग ग्रुप मेंबरस रबी बहार, केसी सोनकर और साथी* इस विशेष परिवर्तन का प्रस्ताव करते है-

शिक्षकः शिक्षा का अधिकार अधिनियम 'बच्चों,' 'स्कूल' और अन्य 'अधिकारियों' को तो परिभाषित करता है लेकिन दुर्भाग्य से इसमें 'शिक्षक' का उल्लेख नहीं है। एक 'स्थायी कैडर' से सामंती नियोक्ता-कर्मचारी के संबंधों का संकेत मिलता है। आदर्श नियम की शिक्षक योग्यता निर्धारण संबंधी धारा राज्य या स्थानीय प्राधिकरण के शिक्षकों पर ही लागू होती है।

वर्तमान धारापुनर्लिखित धारा/टिप्पणी
राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण, जैसी भी स्थिति हो, शिक्षकों की नौकरी और वेतन, भत्तों के लिए नियम और शर्त तैयार करेंगे ताकि शिक्षकों का एक पेशेवर और स्थायी कैडर (संवर्ग) तैयार हो सके।

पुनर्लिखित धारा/टिप्पणी

राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण, जैसी भी स्थिति हो, इसके द्वारा नियुक्त शिक्षकों की नौकरी और वेतन, भत्तों के लिए नियम और शर्त तैयार करेंगे ताकि शिक्षकों का एक पेशेवर कैडर (संवर्ग) तैयार हो सके।

अतः माननीय न्यायाधीश महोदय आरटीई एक्ट की उक्त धारा के अधीन शिक्षामित्र नियमित शिक्षक की श्रेणी में आते हैं उन्हें शिक्षक के सामान वेतन भत्ते और समस्त सुविधाएँ पाने का अधिकार है।
राज्य ने आरटीई एक्ट अर्थात संविधान के अनुच्छेद 21क को लागू करने के लिए शिक्षामित्रों को समायोजित किया है।
शिक्षामित्रो का समायोजन आरटीई एक्ट के आलोक में वैध है। आप के समक्ष सभी साक्ष्य प्रस्तुत हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

72825 भर्ती और शिक्षमित्र समायोजन केस टेकअप ही नहीं हुआ, बिना सुनवाई लगी 24 अगस्त अगली डेट।।


★72825 भर्ती और शिक्षामित्र समायोजन केस की कुछ पार्टीज के रिटेन सबमिशन जमा न हो पाने के कारण केस टेकअप ही नहीं हुआ।

★रिटेन सबमिशन जमा न करने वाले वादियों और प्रतिवादियों को कोर्ट ने चेतावनी जारी की।

जैसा कि हम अपनी 20 और 25 जुलाई की पोस्ट्स में आज 27 जुलाई की सुनवाई के विषय में अपना पूर्वानुमान बता चुके थे, वही हुआ।

●इस सुनवाई में बहस के लिए मिशन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस, अधिवक्ता फ़िएडेल सेबेस्टियन, अधिवक्ता आर एल डोगरा, अधिवक्ता ब्रिज मोहन और श्रीमती ज्योति मेंदिरत्ता एओआर की बहस की तैयारी पूरी थी। मगर सुनवाई नहीं हुई।

★अगली 24 अगस्त की सुनवाई अति महत्त्वपूर्ण है।

अगली सुनवाई में 72825 केस का अंतिम फैसला आने की पूरी सम्भावना। 24 अगस्त की डेट 72825 केस के ताबूत में आखरी कील गाड़ी जायेगी।
शिक्षामित्र केस में 24 अगस्त फाइनल हियरिंग की शुरुआत होगी।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कॉलिन गोन्साल्विस और अधिवक्ता फ़िएडेल सेबेस्टियन ने केस पर पूरी तैयारी की है। वे ये केस पुरे मन से लड़ रहे हैं। और समूह के वर्किंग ग्रुप मेंबर रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियों ने केस के हर पहलु पर मेहनत की है और ये समूह अपनी जीत के प्रति पूर्ण आश्वस्त है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Sunday, July 24, 2016

"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह लड़ेगा देश भर के पारा शिक्षकों की लड़ाई।।


उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों के समायोजन केस में आश्वस्त होने के बाद "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह की विधिक कार्यकारिणी ने देशभर के पैरा टीचर्स को न्याय दिलाने का निर्णय लिया है।
देश भर के विभिन्न प्रदेशों में एसएसए के तहत नियुक्त संविदा शिक्षको/पारा शिक्षको के पूर्ण शिक्षक का दर्जा दिए जाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में डालने की तैयारी है। प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित संविदा शिक्षक जो आरटीई एक्ट 2009 लागू होने के पूर्व से कार्यरत हों वे मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह की कार्यकारिणी से संपर्क करें।
27 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में हमारा समूह समायोजित शिक्षकों की बात अकाट्य साक्ष्यों, तथ्यों और तर्कों के साथ रख रहा है।
'पीपुल्स लॉयर' कहे जाने वाले देश के जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कॉलिन गोन्साल्विस और अधिवक्ता फ़िएडेल सेबेस्टियन के द्वारा लिखित बहस 26 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में ऑन रिकॉर्ड प्रस्तुत कर दी जायेगी।
इसी के साथ ही देश भर के एसएसए संविदा शिक्षकों की याचिका पर भी कार्य शुरू कर दिया जायेगा। अपना पूर्ण एवम् नियमित शिक्षक का अधिकार पाने के लिए
झारखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, गुजरात आदि के एसएसए शिक्षक निम्न अधिकृत सदस्यों से संपर्क कर सकते हैं:-http://opiniontoday.blogspot.in/2016/07/blog-post_24.html?m=1

रबी बहार -09359634908
केसी सोनकर- 09450047235
माधव गंगवार -09760497491
मुहम्मद फैसल- 09027651068
अरविन्द गंगवार- 09627276315
मोहित त्यागी-09997940269
मुहम्मद इरशाद-08922886711
ब्रतेंद्र चौहान-09568212344
रोहित शुक्ल-09410238889
मिसरे यार खान-09457012884
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Wednesday, July 20, 2016

27 जुलाई से पहले एनसीटीई, एमएचआरडी और भारत सरकार भी हलफनामा दाखिल करेगी।

शिक्षामित्र समायोजन मामला अब फैसला होने के करीब है। शिक्षमित्र संघों और टीमों के बड़े बड़े दावो और वादों की पोल खुलने ही वाली है।
क्योंकि एनसीटीई ने हाई कोर्ट में भ्रामक हलफनामा दाखिल कर समायोजन रद्द करवाने में अहम भूमिका अदा की थी। और इसी क्रम में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में दाखिल की गई सभी प्लीडिंग्स को जस का तस मंगवाया था। इस पर संघो द्वारा एनसीटीई से परिवर्तित हलफनामे की मांग की गई और लगातार एनसीटीई से संपर्क बनाये रखने की बात कही जाती रही है।
◆अब जबकि 27 जुलाई से पहले कोर्ट ने सभी पार्टीस से रिटेन सबमिशन दाखिल करने का अनुरोध किया है। ऐसे में एनसीटीई एमएचआरडी और भारत सरकार की ओर से लिखित बहस/ सबमिशन जमा किया गया होगा या किया जायेगा।

■ शिक्षामित्रों को समायोजन बचाने के लिए एमएचआरडी और एनसीटीई का स्पष्टीकरण ज़रूरी था।

जिस कारण शिक्षमित्रों के दवाब के चलते शिक्षामित्रों के दोनों बड़े संगठन जितेंद्र शाही और गाज़ी इमाम आला एनसीटीई एक्ट 2010 यथा संशोधित में उल्लेखित (12क) पर एमएचआरडी और एनसीटीई से स्पष्टीकरण प्राप्त करने को प्रयास करेंगे, ये बात बार दोहराते रहे हैं। लेकिन अब तक इस पर कोई काम नहीं करवा सके हैं।
उक्त संशोधन में उल्लेख है कि "वो समस्त लोग जो शिक्षक के रूप में नियुक्त किये गए हों चाहे वो किसी भी नाम से जाने जाते हों अप्रशिक्षित अध्यापक हैं"
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के विधिक जानकार आज ये खुलासा कर रहे हैं कि  एनसीटीई के वकील गौरव शर्मा और अनिल सोनी 26 अप्रैल को सुनवाई में मौजूद थे  और संभवतः लिखित सबमिशन दाखिल करने वाले हैं या फिर कर चुके है। इसलिए किसी खुशफहमी में न रहते हुए हमारे समूह के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस  शिक्षामित्रों के पक्ष में अकाट्य साक्ष्यों के साथ 27 जुलाई की सुनवाई में मौजूद होंगे और एनसीटीई को उसके भ्रामक हलफनामे पर घेरेंगे। क्योंकि......
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

सुप्रीम कोर्ट ने लिखित सुब्मिशन माँगा, बहस के चांस कम।।

◆27 जुलाई की सुनवाई की संभावित रुपरेखा

शिक्षामित्र केस अब अपने आखरी पड़ाव की ओर है। सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई की सुनवाई में सभी पार्टीज से लिखित सुब्मिशन तलब किया है। जो कि 27 तक सभी को जमा करना है।
क्या है लिखित सबमिशन:-
रिटेन सुब्मिशन एसएलपी के क्वेश्चन ऑफ़ लॉ का ही एक परिवर्तित रूप होता है। अर्थात आप को हाईकोर्ट के फैसले की कमियाँ गिना के अपनी बात रखना होगी।
यानी जिस एसएलपी में हाइकोर्ट के फैसले पर जो भी सवाल उठाये गए हैं उन्हें कोर्ट में रखना है और विरोधी आप के सवालों पर रेजोइंडर सुब्मिशन दाखिल करेगा।
कोर्ट की नियमावली के हिसाब से ये प्रक्रिया अधिकतम तीन दिन चलाई जा सकती है। 72825 पर अंतरिम आदेश आने के 99%चांस है। चूँकि मुख्य केस वो ही है। बहस टेट और अकादमिक पर ही होने की सम्भावना अधिक है। 

27 के बाद क्या होगा:-
सुप्रीम कोर्ट में लिखित सुब्मिशन जमा हो जाने के बाद रेजोइंडर का आदेश हो सकता है या फिर इन्ही सुब्मिशनस पर मौखिक बहस कराई जा सकती है।
हालात को देखते हुए रेजोइंडर सुब्मिशन लेने के साथ मौखिक बहस होने की सर्वाधिक सम्भावना है। सुनवाई रेगुलर हियरिंग के तहत अगली तारीख लगने के बाद होने की पूरी सम्भावना है।

"मिशन सुप्रीम कोर्ट" की 27 जुलाई की तैयारी:-
27 जुलाई की सुनवाई में मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह द्वारा लिखित सबमिशन तैयार कराया जा रहा है। चूँकि इस समूह द्वारा दाखिल की गई एसएलपी के बिंदु अब तक दाखिल हुई सभी एसएलपी से अलग और संवैधानिक उपबन्धों पर आधारित हैं इसलिए समूह के सदस्य जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
लिखित सुब्मिशन से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस समूह के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस को अपनी बात रखने में आसानी होगी।
लिखित सबमिशन तलब कर के सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई को सरल बना दिया गया है जिससे हमारी जीत की सम्भावना और बढ़ गई है।
"मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के साथियों को अवगत कराना चाहते हैं कि 27 की सुनवाई में हमारे द्वारा जमा किये गए सबमिशन विरोधी को ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Tuesday, July 19, 2016

.....तो शिक्षामित्र भी शिक्षा सहायको की तरह बाहर होते!!

    

2014 में जब शिक्षामित्रों को समायोजित करने का मुद्दा उठा सब से पहले शिक्षामित्रों को शिक्षा सहायक बनाने की बात आई। मज़ेदार बात ये कि शिक्षामित्र संघो की ज़िद के चलते शिक्षामित्रो को शिक्षा सहायक बनाने का प्रस्ताव बना।
आज अगर शिक्षामित्र भी शिक्षा सहायक होते तो उड़ीसा के 8000 शिक्षा सहायकों की तरह बर्खास्त हो चुके होते।
सोशल मीडिया पर 8000 शिक्षा सहायकों को टेट पास न कर पाने कारण हटाये जाने की खबर वायरल हुई।

कौन हैं शिक्षा सहायक :
वर्ष 2011 में उड़ीसा सरकार ने शिक्षामित्रों की तर्ज पर शिक्षा सहायक नियुक्त किये। इनकी नियुक्ति की शर्त ये थी कि वे 5 वर्ष में न्यूनतम अर्हता का अर्जन करेंगे।
किन्तु 2013 में जब टेट पास करने का आदेश राज्य सरकार ने दिया तो ये लोग कोर्ट चले गए। और मई में इनके खिलाफ फैसला आ गया। और अंततः इन्हें बरखास्त करने की कारवाही हुई।

शिक्षामित्रों से शिक्षा सहायकों की नियुक्ति की प्रकृति पूर्णतयः अलग है।
शिक्षामित्रों को समायोजित किया गया जबकि शिक्षा सहायको की नियुक्ति की गयी।
शिक्षामित्र एनसीटीई के शैक्षिक प्राधिकारी बनाये जाने और आरटीई एक्ट लागू होने के पूर्व से नियुक्त हैं।
हाई कोर्ट इलाहबाद ने भी शिक्षामित्रों का समायोजन ये कहते हुए रद्द किया कि शिक्षामित्र आरटीई एक्ट और एनसीटीई रेगुलेशन की वध्यताओं को पूरा नहीं करते है।
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के विधिक जानकारों द्वारा हाई कोर्ट की उक्त टिप्पणी पर अकाट्य साक्ष्य अपने अपने वकील डॉ कॉलिन गोन्साल्विस को उपलब्ध कराये हैं। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के वकील अपनी एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले पर इसी पर आधारित पक्ष रखेंगे।
हाई कोर्ट के फैसले का उक्त सार ही शिक्षामित्रों को सुप्रीम कोर्ट से बहाल करायेगा। और शिक्षामित्र सहायक अध्यापक के पद पर बने रहें इस की ठोस तैयारी की गई है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।

Saturday, July 16, 2016

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नाम खुला पत्र।।

सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश, महोदय
सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली।।

महोदय,
          देश की कार्यपालिका को सही दिशा देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय सदैव श्री कृष्ण की भूमिका निभाता रहा है। और इस बार भी शिक्षामित्रों के पौने दो लाख परिवारों के साथ न्याय कर के उनका मान बढ़ाएगा।
कल हमारे संज्ञान में आया कि एक बीएड बेरोज़गार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय को पत्र लिख कर न्याय को अपने पक्ष में करने के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ के पेश किया। सर्वप्रथम तो किसी भी न्यायाधीश को पत्र लिख कर अपने मुक़द्दमे को पक्ष में करने को कहना या तथ्यों को गलत तरीके से रखना अपराध की श्रेणी में आता है। चूँकि ये बीएड धारक बेरोज़गार वर्ष 2014 से अब तक लगातार प्रदेश में अराजकता फैला रहे हैं। प्रदेश सरकार इनकी अराजकता से परेशान हो कर इन पर एफआईआर दर्ज करवाने को मज़बूर है। अब एक बार फिर न्याय की सर्वोच्च संस्था के माननीय न्यायाधीश महोदय को पत्र लिख कर कोर्ट के नियमों पर कुठाराघात किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त न्यायाधीश महोदय से अनुरोध है कि इस व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करें ताकि कोई भी न्याय व्यवस्था में दखलंदाज़ी करने की हिम्मत न करे और एक नज़ीर बने।
हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि
आप के द्वारा निर्णीत उन्नीकृष्णन केस के कारण ही देश में 86 वां संविधान संशोधन किया गया और सब के लिए शिक्षा परियोजना शुरू कर के छात्र शिक्षक अनुपात बनाने के लिए एसएसए शिक्षकों अर्थात पैरा शिक्षकों की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की गई।
इस के बाद वर्ष 2005 में आरटीई एक्ट लागू करने की पूरी तैयारी कर ली गई लेकिन राज्य ने आर्थिक रूप से कमज़ोर होने का हवाला दे कर इसे स्थगित कर दिया गया। वर्ष 2004-5 में ही सभी शिक्षामित्रों को शिक्षकों के मूल वेतन के बराबर वेतन देने को केंद्र ने एडवाइजरी और गाइड लाइन जारी की। लेकिन राज्यों ने इसे लागू नहीं किया बल्कि हमें बहुत कम मानदेय पर काम करने को मज़बूर किया।
यहाँ उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन विश्वविद्यालय, भारत सरकार व् एनसीईआरटी ने एसएसए के तहत सर्वे रिपोर्ट जारी कर ये बताया कि देश में बुन्यादी शिक्षा को इन्ही लोगों ने संभाल रखा है। और ये लोग ही हैं जो देश में संविधान अनुच्छेद 21क को लागू करवाने के लिए खून पसीना बहा रहे हैं और बदले में 2 से 3 हज़ार रूपये पा रहे हैं।
हम पुनः आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 21 क को लागु करवाने के उद्देश्य से देश में 1 अप्रैल 2010 को आरटीई एक्ट लागू किया गया। और इसके लागू करने से पूर्व ही शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित कर शिक्षक बनाने का मसौदा तैयार किया गया।
और इसके लिए भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ही व्यवस्था दी। उपेन्द्र राय केस में आप के द्वारा एनसीटीई को शिक्षक की योग्यता तै करने का अधिकार छीन लिया। और फिर केंद्र सरकार ने एनसीटीई को शैक्षिक प्राधिकारी बनाने की व्यवस्था की और एनसीटीई एक्ट 1993 में संशोधन कर सेक्शन 12क जोड़ा और 32डीडी में संशोधन कर के शिक्षामित्रों को शिक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया।
हम ये भी आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि बीएड को आप के द्वारा विभिन्न केसेस में प्राथमिक शिक्षा के लिए अवैध घोषित किया जा चुका है।
साथ ही एनसीटीई द्वारा ने भी बीएड को ये कह कर अवैध बताया है कि
Note :
For appointment of teachers for primary classes, basic teachers’ training programme of 2 years’ duration is required. B.Ed. is not a substitute for basic teachers’ training programme.
इलाहबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा जिसे आप के ही द्वारा गठित करने का निर्देश दिया था उक्त पीठ ने भी बीएड को प्राथमिक शिक्षा में अवैध घुसपैठ बताया है
और इनको बेसिक में शिक्षक बनने के लिए 31 मार्च 2014 तक ही छूट दी गई है। क्योंकि राज्य का कहना था प्रदेश में शिक्षामित्रों के शिक्षक बना देने के बाद भी आरटीई मानक अनुसार शिक्षकों की कमी है
अतः राज्य को बीएड भर्ती की छूट दी जाये। और मज़बूरीवश केंद्र सरकार को छूट देना पड़ी। टेट में हुआ भ्रष्टाचार और फर्जीबाड़ा आप के संज्ञान में है ही।
इस सब के बावजूद बीएड धारक माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय पर मानसिक दवाब डालने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। कृपया प्रकरण का संज्ञान लेकर कठोर कार्यवाही करने की कृपा करें।
       धन्यवाद
                    विनीत
रबी बहार, केसी सोनकर और साथी।।

27 जुलाई को होने वाली सुनवाई की केस लिस्ट(adv.) जारी।


★सुप्रीम कोर्ट की एडवांस कॉज़ लिस्ट जारी।

★मात्र 4347-4375/2014 और इस से सम्बंधित केसेस की सुनवाई मेरिट पे होगी।
★ शिक्षामित्रों से जुड़े मामले अलग होने की प्रबल सम्भावना है।
★ 11 जुलाई को सुने गए केस दो बजे से पहले अलग से सुने जायेंगे।

अर्थात अवशेष शिक्षामित्रों और बीएड वालों से सम्बंधित केस 2 बजे से पहले सुना जायेगा।

★ 72825 मामले की सुनवाई 2 बजे से होगी।

मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह की प्रवर्धित याचिका पर भी सुनवाई 2 बजे सब के साथ होगी।
हमारे केस में बहस करने के लिए
◆वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस।।
◆अधिवक्ता ज्योति मेंदिरत्ता ।।
◆अधिवक्ता फिडेल सेबेस्टियन।।
शामिल होंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Friday, July 15, 2016

शिक्षामित्रों के दोनो बड़े संघ एमएचआरडी और एनसीटीई से शिक्षक श्रेणी पर स्पष्टीकरण मांगेंगे।।

★शिक्षामित्रों के लिए एनसीटीई अधिनियम 1993 (यथा संशोधित 2010व 2011) में संशोधन कर अप्रशिक्षित अध्यापक के रूप में परिभाषित किया गया।
★मुख्य सचिव यूपी को 26 ओक्टूबर को भेजे पत्र में एनसीटीई ने शिक्षामित्रों को पूर्व नियुक्त शिक्षकों की श्रेणी में रखने की बात कही।
★ मार्च व् जून 2016 में एमएचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा राज्य सभा और लोक सभा में अपने लिखित उत्तर में ये कहा गया:-
training of all untrained teachers to acquire professional qualifications through Open Distance Learning (ODL) mode, अर्थात समस्त अप्रशिक्षित अध्यापकों(शिक्षामित्रों) को दूरस्थ माध्यम से प्रशिक्षण करवा कर प्रोफेशनल अर्हता पूर्ण कराई गई।
■उपरोक्त बिन्दुओ को सुप्रीम कोर्ट में रखने के लिए एमएचआरडी और एनसीटीई का स्पष्टीकरण ज़रूरी है।

शिक्षमित्रों के दवाब के चलते शिक्षामित्रों के दोनों बड़े संगठन जितेंद्र शाही और गाज़ी इमाम आला एनसीटीई एक्ट 2010 यथा संशोधित में उल्लेखित (12क) पर एमएचआरडी और एनसीटीई से स्पष्टीकरण प्राप्त करने को प्रयास करेंगे।
उक्त संशोधन में उल्लेख है कि "वो समस्त लोग जो शिक्षक के रूप में नियुक्त किये गए हों चाहे वो किसी भी नाम से जाने जाते हों अप्रशिक्षित अध्यापक हैं"
◆शिक्षामित्र संघों को अपने इस प्रयास द्वारा एनसीटीई से शिक्षामित्र ही वो अप्रशिक्षित अध्यापक थे, ये तथ्य कोर्ट के समक्ष स्पष्ट कराना है। ताकि जीत सुनिश्चित हो। और एमएचआरडी व एनसीटीई द्वारा राज्य को एडवाइजरी जारी की जाय। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के विधिक जानकार इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोनों संघो को अपना पूर्ण सहयोग और हर संभव सहायता देगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Wednesday, July 13, 2016

15 जुलाई को ट्रेनिंग के खिलाफ लगी याचिका पर नहीं होगी सुनवाई!!

15 जुलाई को ट्रेनिंग के खिलाफ पड़ी याचिका की केस हिस्ट्री।।

◆ये याचिका 27 जुलाई की सुनवाई के लिये टैग कर दी जायेगी।

ये याचिका हाई कोर्ट में 2015 में डाली गई जिसे हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने 12 सितम्बर को ख़ारिज कर दिया और अपने फैसले में 12 सितम्बर वाले शिक्षामितर समायोजन केस के फैसले का संदर्भ ग्रहण करने को कह के याचिका ख़ारिज कर दी।
इस याचिका का किसी भी शिक्षामित्र संघ या टीम ने कोई विरोध नहीं किया था।

इसी याचिका के खिलाफ एसएलपी दाखिल की गई है।
वर्तमान में ये एसएलपी 10659/2016 एक कनेक्टेड केस है और 15 जुलाई को इस पर कोई सुनवाई नहीं होगी।
©रबी बहार*, केसी सोनकर और साथी*।

Tuesday, July 12, 2016

...और अब 11 जुलाई की तरह 15 जुलाई को बीएड बीटीसी बेरोज़गार लताडे जायेंगे!!

शिक्षामित्रों के दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण के खिलाफ हाई कोर्ट की एकल पीठ से लेकर पूर्ण पीठ तक 12 सितम्बर 2015 और इसके बाद तक दर्जनों लोगों की याचिकाएं ख़ारिज कर चूकाहै।

बीएड बेरोज़गारों और बीटीसी बेरोज़गारों की ओर से 2014-15 में प्रशिक्षण के खिलाफ याचिकाएं की जा चुकी हैं जिनपर सुनवार्इ 27 जुलाई को होगी।
और अब फिर माननीय सुप्रीम कोर्ट में ट्रेनिंग मामले की १०६५९/२०१६ अशोक कुमार तिवारी vs स्टेट ऑफ यूपी की सुनवाई १५ जुलाई को आइटम नं० ३१ पर होगी।
11 जुलाई को जिस तरह से कोर्ट ने अपना रोष और खिन्नता प्रदर्शित की अब वो ही दृश्य बीएड बीटीसी बेरोज़गारों के सामने 15 जुलाई को होगा।
कोर्ट एक बार फिर इन याचियों को लताड़ लगा के याचिका 27 जुलाई को टैग करेगा। ऐसा पूर्ण संभावित है।
सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी और 26 अप्रैल को स्पष्ट आदेश कर चूका है कि अब कोई भी याचिका इंटरटेन नहीं की जायेगी। इसके बावजूद ये बेरोज़गार शिक्षामित्र प्रशिक्षण के मुद्दे पर बार बार मुंह उठा के क्यों चले जाते हैं। ये तथ्य सर्वविदित है की बेरोज़गारों की याचिकाये अब तक लोकस न होने के कारण खारिज होती रही हैं।
◆"मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के विधिक जानकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस और फ़िडेल सेबेस्टियन को ट्रेनिंग से सम्बंधित साक्ष्य और पत्रावली उपलब्ध करवा दी गई है। अधिवक्ता का कहना है कि आप के प्रशिक्षण को जो कोई भी चैलेंज करेगा वो मुंह की खायेगा।
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह का मानना है कि
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।