कल एक पोस्ट जो हमारी पोस्ट 21क है सुरक्षा कवच को ध्यान में रख कर लिखी गई। जिसे संवैधानिक साजिश के नाम से पोस्ट किया गया। उक्त पोस्ट पूर्णतयः मनगढ़ंत तथ्यों पर आधारित थी।
आइये सच्चाई से अवगत कराते हैं:-
जैसाकि हम जानते हैं कि
अनुच्छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ।
और आरटीई अधिनियम उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करता है।
और इसके लिए एक्ट की धारा 23(2) में स्पष्ट लिखा गया एक शिक्षक के रूप में नियुक्त व्यक्ति 5 वर्ष में न्यूनतम अर्हता धारण करेगा। आरटीई एक्ट में कहीं भी पूर्णकालिक या नियमित शिक्षक शब्द का प्रयोग तक नहीं हुआ है। दूसरी तरफ चंदे का धंधा चमकाने वाले लोग शिक्षामित्रों को इंगित कर टेट लागू होने की बात ये कह के करते हैं कि वे पूर्णकालिक शिक्षक नहीं है इसलिए उनपे टेट अर्हता लागू है। जबकि एनसीटीई की 23 अगस्त 2010 की गाइड लाइन का पैरा 4 व् 5 शिक्षामित्रों पर टेट लागू नहीं बताता है। मिशन सुप्रीम कोर्ट के वर्किंग ग्रुप के रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों ने आरटीई एक्ट और एनसीटीई के नियमों पर विस्तृत अध्ययन किया है।
इसकी गाइड लाइन तै करने के लिए आरटीई के अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत और एनसीटीई को आरटीई अधिनियम की धारा 29 के शैक्षिक प्राधिकारी क रूप में एनसीटीई की नियुक्ति के लिए अधिसूचना दिनांक 31 मार्च, 2010 को जारी करदी गई।
और नवीन नियुक्ति के लिए 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई ने अपना नोटिफिकेशन जारी कर बीएड डिग्री धारकों को मात्र "एक वर्ष" में प्राथमिक में जाने की छूट दी गई, और सपा सरकार की राजनैतिक अनुकम्पा के चलते इन अयोग्य उम्मीदवारों को 2014 तक की छूट केंद्र से अनुरोध कर ले ली गई।
एक बीएड या बीटीसी बेरोज़गार सुप्रीम कोर्ट का 9 फरवरी 2011 का आदेश ज0 पी स्थाशिवम व बी0 एस0 चौहान (स्टेट आँफ उडीसा बनाम ममता मोहन्ती ) उल्लेखित कर के बताते हैं कि इस में बेसिक के अध्यापक की योग्यता पर टिप्पणी की गई है।
जबकि उनको पता होना चाहिए कि ये उच्च शिक्षा का मामला है न कि अनुच्छेद 21क का।
दरअसल ये फेसबुकिये ज्ञानी बिना किसी जांच पड़ताल के इधर उधर से टीप के अपने बेरोज़गार साथियों को खुश करने के लिए पोस्ट कर देते हैं।
जिसमे लेश मात्र भी सत्यता नहीं होती। मिशन सुप्रीम कोर्ट की पोस्ट केंद्र और राज्य के प्रमाणिक दस्तावेज़ोपर आधारित पोस्ट होती हैं। हवा हवाई नहीं होती।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।