Wednesday, June 29, 2016

शिक्षामित्रों की परिवर्धित विशेष अनुज्ञा याचिका से बदल जायेगा केस का रुख।।

शिक्षामित्रों की ओर से 27 जुलाई की सुनवाई के लिए परिवर्धित विशेष अनुज्ञा याचिका दाखिल की जा रही है।
इस विशेष याचिका के पैरवीकार रबी बहार, केसी सोनकर और साथियोंं का दावा है कि इस याचिका में अब तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई सभी याचिकाओं से अलग नजरिया पेश किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के जनहित याचिका के मामले के सर्वाधिक जानकार और मानवाधिकारों के पक्षधर वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस इस याचिका में शिक्षकों (शिक्षामित्रों) की ओर से पेश होंगे।
वर्तमान में भी डॉ कॉलिन गोन्साल्विस देश के एक चर्चित केस मजीठिया वेज बोर्ड से सम्बंधित मीडिया कर्मियों की ओर से खड़े हैं जिस में डॉ कोलिन ने ये ये आदेश करवाया:-
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश, दो माह के भीतर देना होगा मजीठिया वेतनमान।

देश के जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस का कहना है कि शिक्षामित्र निराश न हों उन्हें न्याय ज़रूर मिलेगा।
दूसरी ओर केस के पैरवीकारों का कहना है कि उनके द्वारा जुटाए गए साक्ष्य और तथ्य शिक्षमित्रों के प्रति कोर्ट का बन चुका नज़रिया बदल जायेगा। ये बात वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन ने भी स्वीकार की कि कोर्ट अब तक शिक्षामित्रों को जिस नज़रिये से देखता आ रहा है वाश आउट हो जायेगा।
27 जुलाई 2016 को होने वाली सुनवाई में ये परिवर्धन सम्मिलित हो जायेगा और इस पर उस दिन इस याचिका पर सुनवाई की पूरी सम्भावना है।
पैरवीकारों का कहना है:
आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार*, केसी सोनकर और साथी*।।

Saturday, June 25, 2016

केंद्र की वार्षिक कार्य योजना में शिक्षामित्रों का वेतन स्वीकृत


  ■केंद्र की वार्षिक कार्य योजना में समायोजित शिक्षकों को पूर्ण स्वीकृति दी है।।
●●●●●सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों के मुकद्दमे में केंद्र सरकार की एमएचआरडी और वित्त मंत्रालय को भी शिक्षामित्रों का पक्ष लेना पड़ेगा हम इस सन्दर्भ में हम 2010 से अब तक की केंद्र और राज्य की रिपोर्ट्स का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं इन में बताया गया है कि आरटीई एक्ट लागु करने की दिशा में शिक्षामित्रों के लिए क्या क़दम उठाये गए । हम आप को वर्ष 2010 से 2016 तक केंद्र सरकार की वार्षिक कार्य योजना में शिक्षा मित्रों के सम्बन्ध में क्या योजना तै की गई।
◆वर्ष 2010-11 में यूपी सरकार द्वारा शिक्षामित्रों को शिक्षण प्रशिक्षण दिलवाने हेतु प्रस्ताव दिया गया।
◆अगले वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार को इस डीबीटीसी करवाने हेतु 6000 रूपये प्रति शिक्षामित्र /प्रतिवर्ष की दर से बजट केंद्र सरकार ने यूपी को उपलब्ध करवाया।
◆वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए राज्य ने 124000 शिक्षामित्रों के नियमितीकरण की जानकारी देकर 62000 के वेतन का प्रस्ताव रखा जिसे मंजूरी दे दी गई।
◆फिर 2013-14 के लिए लगभग कुल 154000 शिक्षकों (शिक्षामित्रो) के वेतन का प्रस्ताव रखा गया। केंद्र ने इनका वेतन भी स्वीकृत कर दिया।
◆वर्ष 2014-15 में भी ये ही वेतन बजट स्वीकृत होता रहा।
वर्तमान 2016-2017 वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार 136000 समायोजित शिक्षकों और 14000 अवशेष शिक्षामित्रों का वेतन स्वीकृत कर शिक्षामित्रों के शिक्षक होने पे मोहर लगा दी।
✍इसके बावजूद बीएड बीटीसी बेरोज़गार शिक्षामित्रों के पदों से लेकर नौकरी तक पे दावा ठोंक रहे हैं।
अब सवाल ये है कि बीएड बीटीसी बेरोज़गार की नैया पार लगेगी। जबकि शिक्षामित्रों की स्थिति केन्दीय सरकार ने 2010 से 2016 तक हर प्रकार मज़बूत की है। ये मज़बूती शिक्षामित्रों का सम्मान सुरक्षित रखेगी।
  ★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
✍🏼रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

Friday, June 24, 2016

शिक्षामित्रों के समायोजन के क़ानूनी पहलू।।

               ◆समायोजन बनाम शिक्षामित्र◆
समायोजन का अर्थ है विलय अथवा समागम। तात्पर्य ये कि समायोजन किसी सेवा का केन्द्रीयकरण कहलाता है।
विधिक रूप से देखा जाये तो वर्ष 1991 में समायोजन हेतु एक अधिनियम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाया गया। इस अधिनियम में वे पद व् सेवाएं निश्चित की गई जिन का समायोजन या केन्द्रीयकरण या राजकीयकरण करना था।
इस अधिनियम में ये भी तै किया गया की राज्य इस के लिए मतलब समायोजन के लिए कोई भी नीति निर्धारित कर सकती है। कोई भी तरीका अपना सकती है।
अभी 2015 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने अपने फैसले में इसी पर मुहर लगाते हुए लिखा:-
By policy of regularisation, it was intended to give the benefit only from the date of appointment. The Court can not read anything into the policy decision which is plain and unambiguous.
निसंदेह शिक्षामित्रों के समायोजन हुआ है। ये एक प्रमाणिक तथ्य है।
        
✍केंद्र सरकार के एमएचआरडी द्वारा 2010 से 2015 तक के प्रमाणिक दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद हम शिक्षामित्रों के समायोजन के सम्बन्ध में ये तथ्य पाते हैं:-
# वर्ष 2010,11,12,13 तक के सभी तरह के दस्तावेजों में शिक्षामित्रों के नियमित करने की बात की गई है।
#2014 में जारी दस्तावेज़ में समायोजित कर नियमित करने का उल्लेख मिलता है।
✍यहाँ ये तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट के फैसले में सीजे ने भी absorption into regular service को ही रद्द किया था।
जैसा कि हम कल की पोस्ट में भी स्पष्ट कर चुके है।
●भारत सरकार के सभी सम्बंधित दस्तावेज़ों में मात्र regularize शब्द का ही उल्लेख किया गया है और शिक्षामित्रों की जगह untrained teacher शब्द का।
इसी क्रम में जब हम कहते हैं की नियमित किया जाये तो
इस का सीधा अर्थ है कि हम अस्थाई शिक्षक हैं और नियमित अर्थात स्थाई शिक्षक होना चाहते हैं।
चूँकि हाई कोर्ट में चले 410 मुकद्दमों में से किसी में भी शिक्षमित्र पद सिविल पोस्ट नहीं माना गया ऐसे में
जब शिक्षामित्र कोई सिविल पोस्ट ही नहीं है तो कैसे नियमित हो सकते हैं।
इसी लिए केंद्र और राज्य को शिक्षामित्रों के लिए अप्रशिक्षित शिक्षक शब्द प्रयुक्त करना पड़ा
✍चूँकि समायोजन एक शासन की नीति होती है या कहिये नियमित करने के लिए विलय।
इसे शासन कैसे करता है क्या प्रक्रिया अपनाता है इसमें कोर्ट का कोई दखल नहीं ये बात हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों से साबित है।
The Court can not read anything into the policy decision which is plain and
unambiguous.
और राज्य द्वारा अपनाई गई समायोजन प्रक्रिया की तकनीकी कमियों पर चर्चा........अगली पोस्ट में।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

प्राथमिक शिक्षक बनाम शिक्षामित्र


✍पिछले 15 सालों से एक सवाल हर शिक्षामित्र को तीर सा चुभता रहा है।
"शिक्षामित्र सरकारी कर्मचारी नहीं एक योजना में लगे कर्मचारी हैं?"
●आइये इस का जवाब ढूंढते हैं।

Appointments of Shiksha Mitras were made in pursuance of the recommendations of Village Education Committees which have a statutory status under the provisions of Section 11 of the Basic Education Act of 1972;
ग्राम शिक्षा समिति की शिफारिश और चयन ज़िला समिति द्वारा हुआ जोकि 1972 अधिनियम के तहत था।
✍अब चयन के बाद हम बोर्ड या परिषद् की बात करते हैं जिस के नियमों को लागू किया गया
परिषद् और एसएसए दोनों की वैधानिक स्थिति सामान है।
ये योजना जिस परियोजना ने चलाई या जिस बोर्ड ने लागू की दोनों की वैधानिक स्थिति सामान है दोनों ही सोसाइटी पंजीकरण एक्ट में पंजीकृत हैं।
●मतलब ये कि शिक्षक और शिक्षामित्र दोनों ही सरकारी कर्मी नहीं हैं। उ प्र बेसिक शिक्षा कर्मचारी वर्ग नियमावली 1973 में स्पष्ट उल्लेखित है। परिषदीय कर्मी को पूर्ण सरकारी कर्मी का दर्जा प्राप्त नहीं है।
✍अब बताते हैं अंतर क्या है जिसे सीजे हाई कोर्ट ने भी माना की नियुक्ति 1981 नियमावली के अधीन नहीं हुई।
ये कि अस्थाई और संविदा नियुक्ति थी।
✍शिक्षक और शिक्षामित्रों में बराबरी का दर्जा कब से मिला ?
इस पर विधिक जानकारी दें
2 जून 2010 को शिक्षामित्र और शिक्षक वैधानिक रूप से सामान हो गए और जनवरी 2011 को अधिनियमित हो गए जिसे सीजे ने इन शब्दों में लिखा:-
it would now be necessary to deal with the regulatory provisions contained, firstly in the NCTE Act and the later enactment of the RTE Act of 2009.
अर्थात ये ज़रूरी होगा शिक्षामित्र एनसीटीई और आरटीई एक्ट के दायरे में लाये जाएँ।
✍कहने की ज़रूरत नहीं इस दायरे में हम 2011 में पूर्णरूपेण आ चुके हैं और अब पूर्ण शिक्षक हैं.
©.रबी बहार**,केसी सोनकर और साथी*।।

72825 भर्ती एक राजनैतिक अनुकम्पा। भाग -2

            ★शिक्षामित्र बनाम एडहॉक याची।

✍कल की पोस्ट में हमने चर्चा की कि:-
9 मई 2016 को जो सुनवाई है
इस से हमारे दो बड़े सवाल हल होंगे।
1■एनसीटीई की वैधानिक स्थिति और उससे जुडी उसकी न्यूनतम अर्हता तै करने की शक्ति स्पष्ट होगी।
2■दूसरी बात हमारे सब से बड़े विरोधी का सफाया हो जायेगा अर्थात बीएड अभ्यर्थियों का लोकस समाप्त हो जायेगा।
इस लिये जुलाई का शिक्षामित्रों को बेसब्री से इंतज़ार है।
ये दिन हमारे लिए जीत की ओर दूसरा क़दम होगा।
✍●आज हम शिक्षामित्रों की और एडहॉक याचियों की वैधानिक स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।
आरटीई एक्ट की धारा 23(2) में कहा गया
After six months after the commencement of the Act, no appointment of teacher for any
school can be made in respect of any person not possessing the minimum qualifications
prescribed by the academic authority notified under sub-section (1) of Section 23 without the notification referred to in sub-Rule (3).
✍एक्ट में साफ़ कहा गया कि 31 मार्च 2015 के बाद कोई भी अप्रशिक्षित अध्यापक नही रहेगा।
और ये भी कि किसी भी अप्रशिक्षित अध्यापक की नियुक्ति नहीं की जायेगी।
●एडहॉक याचियों को कोर्ट सिर्फ इस लिए नियुक्त कर रही है ताकि उसे अपने मानक अनुसार 72825 शिक्षक मिल सकें। ये एडहॉक नियुक्ति मात्र कोर्ट का फाइनल डिसिजन आने तक ही है। जिन्हें संदेह हो वो सिर्फ अधिकतम एक माह इंतज़ार कर लें।
अब अगर याची की एडहॉक नियुक्ति होती है तो ये आरटीई एक्ट और संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन होगा। क्योंकि आरटीई इस अनुच्छेद पर ही बना है।
●वर्तमान नियुक्तियों को तो कोर्ट एक मैकेनिज्म का नाम दे के आदेश दे रही है लेकिन अपने फैसले में इनको नियुक्ति देना आरटीई एक्ट के साथ खिलवाड़ करना हो जायेगा। ऐसा देश की सब से बड़ी अदालत कभी नहीं करेगी।
●वही दूसरी तरफ शिक्षामित्रों के लिए आरटीई का प्राविधान है
"A person" appointed
"as a teacher" within six months of the commencement of the Act, must possess at least the academic qualifications not lower than higher secondary school certificate or equivalent.
साफ़ है कि जो लोग शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं उन्हें इण्टर पास होने के साथ दो वर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा।
©रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

72825 भर्ती एक राजनैतिक अनुकम्पा। भाग -1


◆72825 की भर्ती एक राजनैतिक अनुकम्पा है या नहीं ये सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
✍जुलाई 2016 में जो सुनवाई है वो मात्र टेट अभ्यर्थियों की सुनवाई की तारीख नहीं बल्कि ये शिक्षामित्रों के भविष्य का भी अगला क़दम तय करेगी।
✍आइये चिंतन करें। क्या वास्तव में हमारे पास कोई आधार है ऐसा कहने का? जी हाँ । मज़बूत आधार है।
●02.11.2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एनसीटीई से पूछा कि:-

a) Whether the NCTE Guidelines fixing the minimum
qualification are arbitrary and unreasonable?

न्यूनतम योग्यता तय करने के लिए एनसीटीई के दिशा निर्देश क्या मनमाने और अनुचित हैं?
✍संभवतः इस का जवाब एनसीटीई दे चुकी होगी अन्यथा की स्थिति में जुलाई में होने वाली सुनवाई मेरिट पे होने का कोई कारण नहीं है।
●अब बात करते हैं इस बात का शिक्षामित्रों से क्या सम्बन्ध हैं।
इस से हमारे दो बड़े सवाल हल होंगे।
1■एनसीटीई की वैधानिक स्थिति और उससे जुडी उसकी न्यूनतम अर्हता तै करने की शक्ति स्पष्ट होगी।
2■दूसरी बात शिक्षामित्रों के सब से बड़े विरोधी का सफाया हो जायेगा अर्थात बीएड अभ्यर्थियों का लोकस समाप्त हो जायेगा।
इस लिये जुलाई का शिक्षामित्रों को बेसब्री से इंतज़ार है।
ये दिन शिक्षामित्रों के लिए जीत की ओर दूसरा क़दम होगा।
©रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।


72825 भर्ती एक राजनैतिक अनुकम्पा। भाग -2

◆72825 की भर्ती एक राजनैतिक अनुकम्पा है या नहीं ये सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
✍जुलाई 2016 में जो सुनवाई है वो मात्र टेट अभ्यर्थियों की सुनवाई की तारीख नहीं बल्कि ये शिक्षामित्रों के भविष्य का भी अगला क़दम तय करेगी।
✍आइये चिंतन करें। क्या वास्तव में हमारे पास कोई आधार है ऐसा कहने का? जी हाँ । मज़बूत आधार है।
●02.11.2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एनसीटीई से पूछा कि:-

a) Whether the NCTE Guidelines fixing the minimum
qualification are arbitrary and unreasonable?

न्यूनतम योग्यता तय करने के लिए एनसीटीई के दिशा निर्देश क्या मनमाने और अनुचित हैं?
✍संभवतः इस का जवाब एनसीटीई दे चुकी होगी अन्यथा की स्थिति में जुलाई में होने वाली सुनवाई मेरिट पे होने का कोई कारण नहीं है।
●अब बात करते हैं इस बात का शिक्षामित्रों से क्या सम्बन्ध हैं।
इस से हमारे दो बड़े सवाल हल होंगे।
1■एनसीटीई की वैधानिक स्थिति और उससे जुडी उसकी न्यूनतम अर्हता तै करने की शक्ति स्पष्ट होगी।
2■दूसरी बात शिक्षामित्रों के सब से बड़े विरोधी का सफाया हो जायेगा अर्थात बीएड अभ्यर्थियों का लोकस समाप्त हो जायेगा।
इस लिये जुलाई का शिक्षामित्रों को बेसब्री से इंतज़ार है।
ये दिन शिक्षामित्रों के लिए जीत की ओर दूसरा क़दम होगा।
✍रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

Thursday, June 23, 2016

72825 भर्ती फिर फंसने की सम्भावना।।

📢72825 बीएड टेट बेरोजगारों के लिए बड़ी दुखदाई रही है।
राज्य सरकार के साथ साथ बीएड नेताओं ने भी इस भर्ती से खूब माल कमाया। एक ने बार बार आवेदन के नाम पर तो दूसरे ने कोर्ट के नाम पर।
●इस सब के अलावा नई समस्या खड़ी हुई बीटीसी बेरोज़गार जो इस भर्ती के पात्र थे उन्हें इसमें कोई मौका नहीं मिला।
उनका दावा है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। उन्हें भी इस भर्ती में मौका मिलना चाहिए। वे भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
●दूसरी तरफ अवशेष शिक्षामित्रों की मांग हैं कि उन्हें दिया गया 10% कोटा बहाल रखा जाये।

अब तीसरा बड़ा धमाका
झारखंड के बीएड टेट बेरोजगार और पारा शिक्षक भी एमएचआरडी द्वारा दी गई छूट के पत्र को आधार बना कर 72825 में दावा ठोंकने जा रहे हैं।
उनका कहना है कि यूपी ने एमएचआरडी के दिशा निर्देश Notification dated 10.9.2012 Granting relaxation to the state of Uttar Pradesh section 23 of the Right of Children to Free & Compulsory Education का पालन नहीं किया। इसलिए उन्हें इस भर्ती की जानकारी नहीं मिली जबकि राज्य को पडोसी राज्यों में भी इस भर्ती का विज्ञापन निकलना चाहिये था। झारखण्डी बीएड टेट उम्मीदवार भी इस में शामिल होने को याचिका डालने वाले हैं।
एक बार फिर इस भर्ती के फंसने की सम्भावना प्रबल हो उठी है।
■रबी बहार*, केसी सोनकर और साथी*।।

टेट याचियों की आइए और शिक्षामित्र

         ■टेट याचियों की आइए और शिक्षामित्र■
✍इक साथी ने किसी टेट याची की पोस्ट डाली जिस में वो अपनी नियुक्ति न होने को मौलिक अधिकार बता रहा था। बात तो ठीक भी है लेकिन ये मौलिक अधिकार वरीयता क्रम में आखरी है।
पहला शिक्षामित्रों का फिर बीटीसी का। यहाँ बीएड का नाम लिखना धृष्टता होगी। जो हम नहीं करेंगे।
क्योकि
पैरा 9 B
qualifying  the TET  would  not confer  a  right  on  any person  for recruitment/employment as it  is  only  one  of the eligibility  criteria  for appointment.
✍अब बात करते हैं वकन्सिज़ की खाली पदों की।
जिन पर टेट याचियों द्वारा लगातार आइए डाली गई।
हमने इन आइए का अध्ययन करने पर पाया।
there are more that 4.86 lacs vacant posts in class I to V. The true typed copy of decision of state Assembly dated 14.02.2014
साफ़ है इनलोगो ने अपनी आइए में 14 फरवरी के शिक्षामित्रों के समायोजन के कैबिनेट डिसीजन को आधार बनाया है।
✍ये भूल कर की 170000 पोस्ट को राज्य सरकार रिजर्व कर चुकी थी और 2011 से 2016 तक लगातार इन पदों पर केंद्र द्वारा मानदेय और वेतन की संस्तुति होती रही है।
●इन्हें ये भी नहीं पता कि ये सभी पद केंद्र सरकार के लिये एसएसए कैडर में रखे गए थे और ये राज्य के कैडर की रिक्तियां नहीं थी।
अब बात करते हैं इन सब "आइए" में याचियों ने शिक्षामित्रों को हटाने के लिए किस बिंदु को आधार बनाया है? There was also a challenge to a further Government Order dated 19.06.2014 implementing the decision of the State Government to absorb Shiksha Mitras into regular service.
कहने का अर्थ ये कि 16 क को आधार बना कर बार बार हमला किया जा रहा है।
और हमारे संघ और टीम के लोग इस अपेंडिक्स के ऑपरेशन पर खामोश हैं।
यही कारण है कि हम अपने दर्द की दवा खुद करने चल पड़े...
✍रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-5

◆आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-5◆

●राज्य ने अपनी आरटीई नियमावली और शिक्षक नियुक्ति नियमावली में कैसे हमें धोखा दे कर संशोधन किये और हमें मोहरा बनाया ये उल्लेखनीय है।
12 सितम्बर 2015 का हाई कोर्ट का आदेश कहता है कि राज्य ने नियुक्ति नियमावली में अवैध संशोधन किया।
आरटीई नियमावली का 16 क भी अवैध करार दिया।
✍जबकि वर्ष 2011 में जब राज्य सरकार ने नियमावली बनाई तो उसमे अन्य राज्य की तरह शिक्षामित्रों के नियमितीकरण का बिंदु शामिल नहीं किया और न ही 2011 की नियुक्ति नियमावली 12 वें संशोधन में इसे जोड़ा। इस के बाद 12 से 19वें संशोधन तक हम कहीं भी शामिल नहीं किये गए। जब 2014 में 19वें में जोड़ा तो वो भी बीएड के भाग में क जोड़ दिया।
●27 अगस्त 2009 को जब आरटीई अधिनियम का गज़ट किया गया और 1 अप्रैल 2010 को इसे अधिसूचित कर दिया गया तब तक इस में शिक्षामित्रों के सम्बन्ध में कोई विशेष प्रावधान नहीं था लेकिन जब इस का पहला संशोधन आरटीई एक्ट की धारा 35 का प्रयोग करते हुए किया गया।
इस में राज्य सरकार को स्पष्ट ज़िम्मेदारी दी गई कि वो इन की शैक्षिक योग्यता के साथ इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करे।
अर्थात इनको नियमित अध्यापक की योग्यता के दायरे में लाये।
✍लेकिन अफ़सोस सरकार तो सरकार हमारे कोर्ट के पैरवीकारों ने भी आरटीई एक्ट के इन प्रावधानों को अपनी किसी भी एसएलपी में शामिल नहीं किया। और तो और नए साक्ष्य लगाने की बात तो तब की जाती जब आप उसके लिए ग्राउंड तैयार कर लेते।
       ..........शेष कल
✍रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-4

◆आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-4◆

‼जन साधारण के सूचनार्थ‼
       सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन अनुसार एनसीटीई द्वारा स्नातक शिक्षामित्रों के लिए दूरस्थ माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण की अनुमति दी जा चुकी है। ये अनुमति आरटीई एक्ट में दी गई समय सीमा में प्रशिक्षित अध्यापक उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से दी गई है।
क्योंकि इन अप्रशिक्षित अध्यापकों को किसी भी प्रशिक्षण प्रमाण पत्र के बिना नियुक्त किया गया था, ये दूरस्थ प्रशिक्षण इनका पहला पेशेवर डिग्री प्रोग्राम के रूप में है। हालांकि, एनसीटीई / मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ये पहल एक अपवाद है।
ताकि इन अप्रशिक्षित शिक्षकों को सेवा में बनाये रखा जा सके। चूँकि देश में 31 मार्च 2015 तक प्रशिक्षित अध्यापक पूर्ण करना हैं इस कारण ही दूरस्थ शिक्षक प्रशिक्षण की अनुमति दी गई।
          S.C. Panda,
    Chairperson NCTE

ऊपर दी गई विज्ञप्ति मन घडन्त नहीं बल्कि एक ऐसा डॉक्यूमेंट है जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में जारी किया गया।

✍●चर्चा जारी है कि किस तरह आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों को सेवाओं में बने रहने के लिए सुरक्षा कवच है...

●आरटीई एक्ट के लागू होने के बाद जो सब से पहला निर्देश जारी हुआ वो छात्र-शिक्षक अनुपात के अनुपालन का था। वर्ष 2010 में सभी राज्यों को 6 माह में इस की व्यवस्था करने का निर्देश केंद्र सरकार द्वारा दिया गया। जिस के बाद प्रशिक्षण के लिए राज्यों के प्रस्ताव जाने लगे।
●कल हम इस तथ्य का विश्लेषण करेंगे की राज्य ने अपनी आरटीई नियमावली और शिक्षक नियुक्ति नियमावली में कैसे हमें धोखा दे कर संशोधन किये और हमें मोहरा बनाया।
       ..........शेष कल
✍रबी बहार**&केसी सोनकर के साथ माधव गंगवार&टीम*।

आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-3

◆आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-2◆
✍चर्चा जारी है कि किस तरह आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों को सेवाओं में बने रहने के लिए सुरक्षा कवच है।
अब बात करते हैं आरटीई एक्ट के प्रावधानों को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार ने एनसीटीई एक्ट में 2011 में संशोधन कर दिया। ये बात अलग कि "लोग" संशोधन पत्र जारी करवाने के लिए अभी भी एमएचआरडी और एनसीटीई कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं।
और वो संशोधन इस प्रकार है:-
the Bench of three learned Judges of the Supreme Court, Parliament enacted Amending Act 18 of 2011 to provide for the insertion of Section 12-A into the NCTE Act of 1993.
इस में कहा गया कि that nothing in the Section shall affect adversely the continuance of any person recruited under a rule, regulation or order of the Central or State Government or local or other authority,
जो पहले से नियुक्त शिक्षक के रूप में कार्य करने वाले लोग अगर 23.8.2010 के एनसीटीई रेगुलेशन में निर्धारित योग्यता जैसे टेट आदि पूरी न कर रहे हो तो इस का बुरा प्रभाव उन पर न पड़े। उनको नौकरी से न हटाया जाय।
✍ये बात अलग कि इस पर हाई कोर्ट की फुल बैंच में बहस हो चुकी है और कोर्ट मे शिक्षामित्रों अपने आप को सिद्ध न कर सके और कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया।
लेकिन ये तथ्य अपनी जगह अटल है कि ये प्राविधान और संशोधन सिर्फ शिक्षामित्रों के लिए किया गया था। जिस के प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। और सुप्रीम कोर्ट में हम इन्हें दाखिल कर रहे हैं। जीत ही हमारा एक मात्र लक्ष्य है
✍हमें उम्मीद है इन तथ्यों की रौशनी में आरटीई एक्ट का सुरक्षा घेरा और मज़बूत होने का अहसास आप को हो गया होगा।
….............शेष कल
✍रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।

आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-2

◆आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों का सुरक्षा कवच....शेष-2◆
✍कल हमने चर्चा की कि आरटीई एक्ट शिक्षामित्रों को सेवाओं में बने रहने के लिए सुरक्षा कवच है।✍●कहने की ज़रूरत नहीं कि आरटीई एक्ट लागु होने से पहले और लागू होने के बाद देश भर के संविदा शिक्षकों को अप्रशिक्षित अध्यापक ही बताया गया। और आरटीई एक्ट में इन् के लिए 6 माह के अंदर शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था करने का प्राविधान किया गया। और यहाँ से आरटीई एक्ट ने सुरक्षा घेरा बनाना शुरू किया।
●कल हमने विदेशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट्स को आधार बना कर विश्लेषण किया। इस पर कोई ये भी कह सकता है कि विदेशों से फंडिंग करवाने के लिए ये बातें कही होंगी‼
तो ठीक है हम एमएचआरडी में आयोजित राज्यों की बैठक में लिए गए निर्णय की बात करते हैं।
वर्ष 2010 में आरटीई एक्ट लागू होने से पहले एमएचआरडी की तत्कालीन अतिरिक्त सचिव और वर्तमान एनसीटीई की चेयरमैन रीना रॉय ने प्रस्ताव पास करते हुए कहा कि
●अब आरटीई एक्ट लागू किया जाना है और इस में 6 माह में अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण शुरू कराने का प्रावधान है।
इस स्थिति में
"हमें आरटीई एक्ट में निर्धारित किये गए समय अनुसार हमें शिक्षक  प्रशिक्षण की रूप रेखा तैयार करना है ये फेस टू फेस न होकर अनुभव आधारित होगा। इसे दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कराया जाना प्रस्तावित है।"
✍यहाँ राज्य के प्रतिनिधियों ने जानकारी देते हुए दिशा निर्देश मांगे और कहा:-
" देश के एडिड और सरकारी स्कूलों में कुल 9.62 लाख टीचर हैं जिनमे  16% नियमित शिक्षक 69% पैरा टीचर हैं।"
रीना जी ने इनका समाधान ये किया कि इनको आरटीई एक्ट अनुसार दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण दिलाया जायेगा और "इस कोर्स को मान्यता और अनुमति देने की ज़िम्मेदारी एनसीटीई को दी जा चुकी है, कुछ राज्य ने इस बारे में अप्लाय भी करना शुरू कर दिया है।।"
✍हमें उम्मीद है इन तथ्यों की रौशनी में आरटीई एक्ट का सुरक्षा घेरा और मज़बूत होने का अहसास आप को हो गया होगा।
….............शेष कल
✍रबी बहार**&केसी सोनकर और साथी*।।