Friday, September 23, 2016

उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने शिक्षामित्र समायोजन रद्द किया!!

जैसाकि हमने अपनी पिछली पोस्ट में बताया था कि 

ललितकुमार व अन्य बीएड धारकों ने  शिक्षामित्र समायोजन केस पर आइए याचिका दायर कर कहा है कि वह शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण हैं, मगर सरकार ने उन्हें नियुक्ति देने के बजाय शिक्षा मित्रों को नियुक्ति दे दी और उन्हें पात्रता के बावजूद वंचित कर दिया गया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई पुनः शुरू कर दी है।इससे पूर्व इस मामले में स्थगन आदेश हो चूका था और मामला पेंडिंग था लेकिन कुछ बीएड बेरोज़गारों ने आइए डाल के सुनवाई पुनः शुरू करवा दी । इस केस की पहली सुनवाई 2 अगस्त को हुई और दूसरी सुनवाई के लिए कोर्ट ने प्रतिवादियों राज्य सरकार एनसीटीई को हलफनामा दाखिल करने को 3 सप्ताह का समय दिया। इस मामले पर अगली सुनवाई 15 सितम्बर को हुई जिसमें कोर्ट से बीएड धारक याचिकाकर्ता द्वारा भारत सरकार को पार्टी बनाने और याचिका में संशोधन करने की मांग की गई जिसे स्वीकार कर लिया गया और दो दिन में इसे संशोधित कर जमा करने को कहा गया साथ ही भारत सरकार की तरफ से मौजूद अधिवक्ता को दस्ती नोटिस जारी किया गया।

अगली तारीख 23 सितम्बर थी जिसमे सुनवाई हुई और केस की सुनवाई की अगली तारीख 26 सितम्बर लगा दी।
उपरोक्त विवरण से ये साफ़ होता है कि सुनवाई मेरिट पे हो रही है और जल्दी ही केस का फैसला हो जायेगा।

*अब चूंकि मीडिया के माध्यम से ये सुचना मिली है कि समायोजन रद्द करने का फैसला दिया गया है ऐसे में
अब उत्तराखंड के 3300 शिक्षामित्रों की निगाहें भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहे यूपी के शिक्षामित्रों पर टिकी हैं।*

उत्तराखंड के मामले में भी राज्य सरकार की गलती से समायोजन रद्द हुआ और यूपी में भी राज्य के अधिकारियों के टेट छूट मांगने के कारण समायोजन रद्द हुआ। शिक्षामित्र जब पूर्व नियुक्त अध्यापक के रूप में श्रेणीकृत हैं तो इन पर टेट परीक्षा लागू ही नहीं होती है। ये तथ्य यूपी की राज्य सरकार न तो अपने नियमावली संशोधन में स्थापित कर पाई न ही कोर्ट में। इसी तरह उत्तराखंड में भी टेट छूट को आधार बनाया गया जबकि टेट से छूट नहीं दी जा सकती। 


अब चूंकि मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह अपने द्वारा जमा किये गए साक्ष्यों से सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों को पूर्व नियुक्त शिक्षक सिद्ध करने के लिए लड़ रहा है ऐसे में यूपी के समायोजन केस का निर्णय देश भर के संविदा शिक्षकों का भविष्य तय करेगा ऐसा प्रतीत होता है।
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह देश भर के पारा शिक्षकों के मामले पर नज़र रखे है और सुप्रीम कोर्ट से न्यायोचित फैसले के लिए जी जान से जुटा है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी*।।

Saturday, September 17, 2016

नई शिक्षा नीति का संविदा शिक्षकों पर प्रभाव।


नई शिक्षा नीति 2015 के ड्राफ्ट और सुब्रमणियम समिति की शिफारिशो पर काफी समय से चर्चा चल रही है।
हाल फिलहाल शिक्षानीति का इनपुट सार्वजानिक किया गया जिस पर लोगों के सुझाव आमंत्रित किये गए हैं।
*इस इनपुट का एक बिंदु ये भी है कि वर्तमान में कार्यरत समस्त संविदा शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक रखे जाएँ।*
उपरोक्त तथ्य मार्च 2010 में आरटीई एक्ट के ड्राफ्ट में भी शामिल किया गया। इस में कहा गया कि अब कोई भी संविदा शिक्षक नियुक्त नहीं किया जायेगा और जो भी लोग इस श्रेणी के हैं उन्हें पांच वर्ष के अंदर प्रशिक्षित कर उनकी अर्हता पूरी करवाई जाएगी।
*नयी शिक्षा नीति का उक्त बिंदु इसी को पूरा करने की बाध्यता निर्धारित करता है*
उत्तर प्रदेश के लगभग 30000 प्रशिक्षित शिक्षामित्र इस बिंदु से लाभान्वित होने से वंचित हैं। सुप्रीम कोर्ट में वाद विचारधीन है, जिसका निस्तारण होने पे ये लोग भी नियमित शिक्षक की श्रेणी में आ जायेंगे।
*नयी शिक्षानीति के उक्त बिंदु का सर्वाधिक लाभ या नुक्सान झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के संविदा शिक्षकों को होगा। अगर ये लोग राज्य से नियमित नहीं करवा पाये तो नुक्सान और करवा पाये तो लाभ*
हालाँकि वर्तमान में इसकी कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि संवाददाताओं से बातचीत में केंद्रीय शिक्षामंत्री प्रकाश जावडेकर ने स्पष्ट किया कि सरकार ने नयी शिक्षा नीति को अभी अंतिम रूप नहीं दिया है और मसौदा नीति को अभी चर्चा के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाना है।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार मसौदा को शिक्षा विशेषज्ञों के समक्ष चर्चा के लिए रखेगी और इसके बाद मसौदा नीति को कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा । ’’
सरकार ने प्रस्तावित शिक्षा नीति 2015 के लिए गांव से राज्य स्तर तक राय मांगी है। उन्होंने कहा कि लोग 30 सितंबर तक माईगॉवडाटइन पर सुझाव भेज सकते हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार, केसी सोनकर और साथी।

Sunday, September 11, 2016

हाई कोर्ट के फैसले का अँधेरा अब छंटने वाला है!

आज 12 सितम्बर है। काला दिन। जो हमारे साथियों की ज़िंदगी को निगल गया। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के केसी रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और सभी साथी अपने उन साथियों को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं जो फैसले से आहत हो कर ये दुनिया छोड़ कर हम से विदा हो गए।
हाई कोर्ट की भूलों से सबक लेते हुए हम सुप्रीम कोर्ट में इस कलंक को मिटाने के लिए कटिबद्ध हैं।
अब चाहे ट्रेनिंग का मुद्दा हो, आरटीई एक्ट और एनसीटीई के नियमों में शिक्षामित्र समायोजन का आधार सिद्ध करना हो। हमने हर पहलू पर विस्तृत तैयारी की है। अपने ही समाज के विभीषणों के लिए भी तैयारी की जा रही है। हम सिर्फ उम्मीद ही नही पूर्ण विश्वास करते हैं कि हाई कोर्ट के फैसले से जो अँधेरा हमारे जीवन में आया है वो सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले से उजाले में बदल जायेगा। ये उजाला ही हमारी तरफ से अपने दिवंगत साथियों के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगा। हम अपने और उन सब साथियों के परिवार को एक सुरक्षित भविष्य दे सकें यही हमारा एक मात्र लक्ष्य है। इसे हम पा कर रहेंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

*हाई कोर्ट के फैसले से आहत लोगों की मौतों का ज़िम्मेदार कौन??

              (11 मई 2015 से 11 सितम्बर 2016 तक)
*शिक्षामित्र पद से सहायक अध्यापक होने तक के सफर में क्या खोया क्या पाया*

“दूसरों की गलतियों से सीखें … आपका जीवन इतना लम्बा नहीं है कि इन सब को आप स्वयं करके सीखें.”
— चाणक्य
आज ही के दिन हाई कोर्ट ने शिक्षामित्र समायोजन रद्द किया और अगले दिन अर्थात 12 सितम्बर को इसे सुनाया गया था।
जैसा कि चाणक्य का उपरोक्त कथन हमारे सामने है। इसको अपनी प्रेरणा बनाते हुए मिशन सुप्रीम कोर्ट के रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी इस फैसले को अपने साक्ष्यों से गलत सिद्ध करने को जुटे है।
*हाई कोर्ट के फैसले से आहत लोगों की मौतों का ज़िम्मेदार कौन है*:- सच तो ये है कि 11 मई 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने क्या होने वाला है बता दिया था। दिनांक 11 मई 2015 को इलाहाबाद हाइ कोर्ट जस्टिस वी के शुक्ला तथा हूलुवादी जी रमेश द्वारा फ्रेश केस की सुनवाई मे दिया गया ऑर्डर, जिसमे साफ कहा गया कि इस केस की अंतिम सुनवाई के समय शिक्षामित्रों को सहानुभूति व दया के आधार पर कोई छूट नही दी जाएगी तथा इस समायोजन से होने वाले नफा-नुकसान की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की होगी ।
इसके पूर्व मे जस्टिस वी के शुक्ला व जस्टिस कृष्ण मुरारी जी द्वारा रिट संख्या 3205 /2014 मे ऐसा ही ऑर्डर पास किया गया था जिसमे साफ किया गया था की समायोजन सरकार अपनी रिस्क पर करा रही है ।
इस तरह के फैसले से यह साफ होता है की जब भी निर्णय आएगा शिक्षामित्रों की ये दलील काम नही आएगी की वे 14 साल से पढ़ा रहे हैं और 14 महीने से राज्य सरकार के कर्मचारी हैं ।
यहाँ ये साफ़ हुआ कि इसकी पहली ज़िम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार की है। फिर इसके बाद इन मौतों की ज़िम्मेदार बहराइच टीम उर्फ़ एसएसकल्याण समिति, आदर्श शिक्षामित्र एसोसिशनऔर प्र शिक्षामित्र संघ की है।
क्यों? ये ही वो लोग थे जिनके सामने ऐसे कई आर्डर लुखनऊ और इलाहबाद बेंच ने दिए लेकिन किसी भी संघ या टीम ने मज़बूत पैरवी न करते हुए सब कुछ राज्य के भरोसे छोड़ दिया। वर्तमान में इन लोगों की भूमिका सुप्रीम कोर्ट में भी हाई कोर्ट जैसी ही है। जहाँ 57 एसएलपी राज्य की एसएलपी की प्रतिलिपि हों वहां आप और हम क्या उम्मीद कर सकते हैं।
*ब्लैक डे/काला दिवस हम उन साथियों की मौत का तो मना ही रहे हैं, साथ ही संघों की हालत पर भी मनाने को जी चाहता है*
अब बात वर्तमान हालात की अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई बुरी खबर आई तो इसके ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्रों की एसएलपी होंगी। और 45 से 55 साल वाले शिक्षामित्र अगर कोई गलत क़दम उठाते हैं तो इस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्र एसएलपी धारक ही होंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
*पोस्ट से सम्बंधित कोर्ट आर्डर देखने के लिए हमारे पेज पर विजिट करें*
©रबी बाहर,

Sunday, September 4, 2016

शिक्षा का ठेका और ठेके के शिक्षकों का शिक्षक दिवस।।

आज देश भर के शिक्षक जब शिक्षक दिवस मना रहे हैं ऐसे में देश के लगभग 6 लाख शिक्षक जिन्हें राज्य सरकारों ने न तो शिक्षक का पद नाम ही दिया है और न ही शिक्षक का दर्जा। वे अपनी आजीविका और मान सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं।
आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में ठेके पे शिक्षक रखे जाने की प्रथा का अंत नहीं हो सका। देश में आज भी 6 लाख ठेका शिक्षक तैनात हैं और तैनात किये जा रहे हैं।

झारखण्ड, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजिस्थान आदि के पैरा शिक्षकों में उत्तर प्रदेश और झारखण्ड के शिक्षक आज शिक्षक दिवस का बहिष्कार करने को मजबूर हैं।
आंदोलनरत है उत्तर प्रदेश के पैरा शिक्षक:-
आज पांच सितम्बर को उत्तर प्रदेश के 26000 पैरा शिक्षक लखनऊ में धरने पे बैठे हैं।
ये कैसा शिक्षक दिवस है जिस में आजीविका और मान सम्मान के लिए एक शिक्षक सड़क पर आ गया है।
वर्ष 2005 में जब आरटीई अधिनियम लागू करने के लिए राज्यों से बात की गई तो राज्यों का कहना था कि हमारे पास शिक्षकों के लिए धन का अभाव है। अब जबकि 2010 में आरटीई लागू करने को राजी हुए तो तै हुआ कि इस संवैधानिक वाध्यता के अधीन सभी राज्य नियमित शिक्षक रखेंगे। और इनको नियमित करने की समय सीमा 31 मार्च 2015 रखी गई।
लेकिन अधिकाँश राज्य इस मद में धन तो पा रहे हैं लेकिन एक शिक्षक को उसका अधिकार नहीं दे रहे।
क्या कहता है आरटीई एक्ट:-
अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 23(3) में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक शिक्षक कार्य करने वाले व्यक्ति को वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं दी जाएँ।
लेकिन राज्य की सरकारों ने इस क़ानून का मज़ाक बना के रख दिया है। यूपी के 26000 लोग मात्र 3500 रूपये में जीवन यापन करने को मज़बूर हैं। और खून के आंसू रो रहे हैं। झारखण्ड में 5000 रूपये तो अन्य राज्यों में 8 और 12000 रूपये में ज़िन्दगी घसीट रहे हैं।
हमने सोचा था कि हाकिम से करेंगे फरयाद।
वो भी कमबख्त तेरा चाहने वाला निकला।।

जबकि ये तब है जब देश की सर्वोच्च अदालत को आरटीई एक्ट के लागू करने की निगरानी करने का दायित्व सौंपा गया है।
हुआ इसका उल्टा एक तरफ हिमाचल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने तो अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए सभी ठेका शिक्षकों को नियमित करने का आदेश दिया वहीँ दूसरी तरफ उसी साल में यूपी के मुख्य न्यायाधीश ने नियमित का हटाने का आदेश दिया।
अब मामला देश की सर्वोच्च अदालत के सामने है। उम्मीद की जाती है कि वो संविधान की रक्षा करते हुए देश भर के पैरा शिक्षकों को नियमित कर के उन्हें शिक्षक का सम्मान देने का आदेश करेगीे। और देश के 6 लाख ठेका शिक्षक ठेके की शिक्षा व्यवस्था से निजात पाएंगे। और 5 सितम्बर 2017 का शिक्षक दिवस शिक्षक के रूप में मनाएंगे।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी*।
मिशन सुप्रीम कोर्ट।।

Saturday, September 3, 2016

संविदाकर्मी हों या वेतन बोर्ड के कर्मचारी दोनों का ही दर्जा कर्मचारी का: सुप्रीम कोर्ट।

संविदाकर्मी पत्रकारों के मामले में 23 अगस्त 2016 को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और प्रफुल्ल सी पंत की बेंच में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश जारी किये।
अनुबंध पर रखे गए कर्मचारी और वेज बोड कर्मचारी, दोनों कर्मचारी हैं... सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए सभी कर्मचारियों को मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लाभ देने को कहा।
मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों का लाभ हर हाल में देना होगा।

करीब पौने दो घंटे सुनवाई चली। इस सुनवाई अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कद्दावर वकील पेश हुए। लेकिन पिछली सुनवाइयों के मुकाबले इस सुनवाई में बड़े वकीलों की फ़ौज वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस के सामने न चल पाने की वजह से नहीं उतारी गई। पूरी सुनवाई में मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह की ओर से समायोजित शिक्षामित्रों का केस लड़ रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ही छाये रहे। इस दौरान कर्मचारियों के वकील डॉ कोलिन गोंजाल्विस ने कोर्ट को पांचों राज्यों की रिपोर्ट और उनकी विसंगतियों से अवगत कराया। इसके बाद पांच में से आए चार लेबर कमिश्निरों से अदालत ने व्यक्तिगत रूप से अदालत का सामना किया। इस प्रकरण के दौरान अदालत के गुस्से का शिकार होते-होते बच गए यूपी के लेबर कमिशनर लेकिन हिमाचल प्रदेश के लेबर कमिशनर नप गए। सबसे बुरा हुआ उत्तराखंड के लेबर कमिशनर के साथ। उनकी अनुपस्थिति से नाराज अदालत ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को उनके खिलाफ वारंट जारी कर अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को पेश करने को कहा है। अदालत को हल्के में लेने वाले अधिकारियों और अखबार मालिकों के लिए ये एक सबक है।
उत्तर प्रदेश के लेबर कमिश्नर को 6 हफ्ते में मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ दिलाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने लिखित रूप से तो नहीं बल्कि मौखिक रुप से यह भी कह दिया कि अगर आपने 6 सप्ताह में ऐसा नहीं किया तो जेल भेज दूंगा। 4 अक्टूबर को महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड और दिल्ली के लेबर कमिश्नर को हाजिर होने का आदेश भी कोर्ट ने दिया।
मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर,माधव गंगवार और साथी अपने वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस से शिक्षामित्र समायोजन केस में भी इसी तरह की जीत की उम्मीद हैं।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।
©रबी बहार, केसी सोनकर,माधव गंगवार और साथी।मिशन सुप्रीम कोर्ट।।