Tuesday, August 2, 2016

शिक्षामित्रों की डीबीटीसी स० अध्यापक बनाने को ही करवाई गई!


लखनऊ खंडपीठ का आदेश कल से लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। टेट पास शिक्षामित्र अपनी ढपली अपना राग गा रहे हैं, और नॉन टेट शिक्षामित्र ट्रेनिंग को समायोजन बचाने की गारंटी के रूप में देख रहे हैं।
इस सब के बीच "मिशन सुप्रीम कोर्ट" समूह के लीगल वर्किंग मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों* का स्पष्ट मत है कि लखनऊ खंडपीठ के आदेश का सुप्रीम कोर्ट में न तो कोई इस्तेमाल है न ही कोई लाभ।
शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण वर्ष 2011 से ही हाईकोर्ट की कसौटी पर खरा उतरता रहा है और अब सुप्रीम कोर्ट में भी खरा साबित होगा।

बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के सामान्य-ज्ञान के लिए बताते चलें कि मात्र उत्तर प्रदेश ही नहीं उड़ीसा और बिहार में भी डीबीटीसी का प्रशिक्षण एससीईआरटी ने ही करवाया है और इसी के आधार पर नियुक्ति होती रही हैं।अब चर्चा इसकी कि अब तक कोर्ट का इस ट्रेनिंग को लेकर क्या नज़रिया रहा।
वर्ष 2011 में जब ट्रेनिंग शुरू होने जा रही थी तभी से बीएड बेरोज़गार इसके विरोध में आने लगे थे। मुकदमा हुआ लेकिन कोर्ट ने तब भी कहा कि नहीं ये सही है। और फैसला शिक्षामित्रों के पक्ष में रहा।
फिर 12 सितम्बर 2015 के पूर्णपीठ के फैसले में भी बीएड/बीटीसी अपने बुरे इरादे कामयाब होते नहीं दिखे।बृहद पीठ ने समायोजन तो रद्द किया लेकिन ट्रेनिंग को वैध ही माना।

इस तरह 12 सितम्बर को ही ट्रेनिंग मुद्दे पर संतोष कुमार मिश्र की ट्रेनिंग के विरुद्ध रिट पर भी सुनवाई कर के सीजे ने ख़ारिज कर दी।इसी तरह के कई मुक़दमे आते रहे और ख़ारिज होते रहे। यहाँ बताते चलें कि ये लोग पुनः अपनी ये 12 सितम्बर वाली याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं।
जबकि 2011 से 1 अगस्त 2016 तक लगातार असफल होने के बाद भी इनका मन नहीं भरा है। ये एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से मुंह की खाएंगे।
यहाँ उल्लेखनीय है कि हाइकोर्ट की इलाहबाद खंडपीठ का ही फैसला है जिसमें जज साहब ने ये भी लिख दिया कि :
The purpose of training the untrained Shiksha Mitras is to make them eligible for appointment as Assistant Teachers
माननीय जज महोदय के ये शब्द आज अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए और शिक्षामित्र आज सहायक अध्यापक हैं और रहेंगे। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह ने सुप्रीम कोर्ट में माननीय न्यायाधीश महोदय की कलम से ये ही शब्द दोहराये जाने की पूरी तैयारी की है।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©मिशन सुप्रीम कोर्ट।।